Exclusive: अपने पिता की मौत के बाद ही लाइव कॉन्सर्ट करना पड़ा था- कुमार शानू
मुझे याद है पहली बार जब मैंने माइक्रोफ़ोन हाथ में पकड़ा तो मैंने कोरस कलाकारों को यह कहते हुए सुना – देखो कलकत्ता से एक और गायक आ गया है. उस ताने को सुनने के बाद भी मैंने अपना गाना गाया. बंगाली होने की वजह से सभी को लगता था कि मैं हिंदी भाषा में नहीं गा पाऊंगा. कमाल की बात है कि बातचीत करते हुए मेरा बांग्ला उच्चारण हमेशा आता है, लेकिन गाते हुए एक भी शब्द में आपको इस एहसास नहीं होगा. यह बात कल्याण जी आनंद जी भाई को भी काफी अलग लगी थी. वैसे मुझे बंगाली समझकर लोगों को लगे ना कि ये सही से नहीं गा पाएगा इसलिए उन्होने मेरा नाम केदारनाथ भट्टाचार्य से कुमार शानू कर दिया था. मैं बताना चाहूंगा कि मैंने अपने करियर के शुरुआत से ही सिर्फ हिंदी ही नहीं बल्कि उर्दू पर भी काम किया. जब मैं होटलों में गाता था, उस वक़्त ही मैंने उर्दू का एक टीचर रखा हुआ था.