24 घंटे में आई दो बुरी खबरों से हिल गया भारत, लोगों की जुबान पर रह गईं सिर्फ यादें

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नई दिल्‍ली। भारत के लिए वर्ष 2020 जितना खराब साल शायद ही कोई रहा होगा। साल की शुरुआत से ही एक जानलेवा वायरस की गिरफ्त में बंधे भारत को लगातार एक के बाद एक झटका लगता रहा है। बीते 24 घंटों में जो दो बड़ी शख्सियतों का निधन हुआ है उसने न सिर्फ भारत को बल्कि पाकिस्‍तान को भी हिला कर रख दिया। बुधवार की सुबह बॉलीवुड के लीजेंड इरफान खान के निधन की जब खबर सामने आई तो लगा कि एक बेहद जगमगाता सितारा कहीं खो गया और अपने पीछे केवल एक शून्‍य छोड़ गया। उनके निधन पर केवल बॉलीवुड ही गमगीन नहीं था बल्कि देश की सीमाओं से पार पाकिस्‍तान में भी उनके लिए लोगों की आंखों में आंसू थे और लंबों पर केवल उनकी आत्‍मा की शांति के लिए प्रार्थना थी। उनके निधन की खबर के बाद ट्विटर पर पाकिस्‍तान से हर खास और आम ने उन्‍हें अपनी श्रद्धांजलि दी। लेकिन कोई नहीं जानता था कि 24 घंटों में ही उन्‍हें दूसरी खबर ऋषि कपूर के निधन की सुनाई दे जाएगी। पाकिस्‍तान में भी इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया है। कुछ अखबारों के डिजिटल एडिशन में इरफान खान के निधन को लेकर आर्टिकल भी लिखे गए हैं।

जिस वक्‍त इरफान खान को सुपुर्द ए खाक किया गया उसके कुछ देर बाद ही ऋषि कपूर को खराब हालत की वजह से अस्‍पताल में भर्ती कराया गया। सुबह होते-होते फिर एक बुरी खबर का सामना भारत-पाकिस्‍तान को हुआ। अमिताभ बच्‍चन ने जब उनके निधन की खबर ट्विटर पर दी तो हर कोई स्‍तब्‍ध था। किसी के पास कुछ कहने के लिए बचा नहीं था। लोग इरफान खान के सदमे से उबर भी नहीं पाए थे कि ऋषि कपूर के निधन की खबर ने उन्‍हें तोड़ कर रख दिया। खुद अमिताभ बच्‍चन ने कहा कि वो बुरी तरह से टूट गए हैं। आपको बता दें कि अमिताभ बच्‍चन रिश्‍तेदार भी थे और एक अच्‍छे दोस्‍त भी थे।

ऋषि कपूर और इरफान खान दोनों ही कैंसर से पीडि़त थे। इरफान को वर्ष 2018 में ब्‍लड कैंसर का पता चला था। इसके इलाज के लिए वो विदेश तक गए थे। वहीं ऋषि कपूर भी बीते वर्ष अक्‍टूबर-नवंबर में इलाज के बाद वापस मुंबई लौटे थे। इसके बाद उन्‍होंने दोबारा फिल्‍मों में काम करना शुरू कर दिया था। लेकिन 2 अप्रैल से उनकी हालत फिर खराब हो रही थी जिसके बाद वो दोबारा काम नहीं कर पाए थे।

इरफान और ऋषि कपूर की बात करें तो दोनों की उम्र में काफी बड़ा अंतर था। ऋषि कपूर जहां 67 वर्ष के थे वहीं इरफान की उम्र केवल 53 थी। लेकिन दोनों में ही कुछ समानताएं थीं। ऋषि कपूर मानते थे कि इस दौर में उनके कैरेक्‍टर को और निखारने वाले किरदार उनके सामने आ रहे हैं। वो इन किरदारों को करके खुशी महसूस करते थे। सैकड़ों फिल्‍मों में काम कर चुके ऋषि मानते थे कि भले ही उन्‍होंने 70, 80 और 90 के दशक में कई फिल्‍में की, लेकिन जो अब वो कर रहे हैं वो उनके ज्‍यादा करीब हैं। इस बात को उन्‍होंने कई बार अपने इंटरव्‍यू में दोहराया भी था। ऐसा ही कुछ इरफान के साथ भी था। अपने हर किरदार को उन्‍होंने बखूबी निभाया। चंबल का डाकू पान सिंह तौमर को हममें से कोई नहीं भूल सकता।

चंबल की जो भाषा है वो हर किसी के लिए बोलना भी मुश्किल है, लेकिन इरफान ने उस किरदार को जिस अंदाज में निभाया उसकी जितनी तारीफ की जाए कम ही होगी। इरफान ने अपने दम पर बॉलीवुड में एक अहम मुकाम हासिल किया था। उनका सफर सलाम बॉम्‍बे से शुरू हुआ था और बढ़ते बढ़ते हॉलीवुड तक जा पहुंचा था। उनके दमदार अभिनय की बदौलत एक के बाद एक पुरस्‍कार उनकी झोली में आते चले गए। कई बार सपोर्टिंग एक्‍टर होते हुए भी वो लीड हीरो पर भारी पड़े। इन दोनों ही लीजेंड ने डी-डे फिल्‍म एक साथ की थी। इसमें ऋषि कपूर ने अंडरवर्ल्‍ड डॉन की भूमिका निभाई थी। वहीं इरफान खान एक रॉ एजेंट की भूमिका में थे।

वहीं ऋषि कपूर की बात करें तो उनका ताल्‍लुक बॉलीवुड के उस परिवार से था जिसको उनके दादा पृथ्‍वीराज कपूर ने बड़ी मेहनत से बनाया था। इसको आगे बढ़ाने का काम फिर राजकूपर ने किया। इसके बाद यही काम ऋषि कपूर ने भी किया। आपको बता दें कि राजकपूर की कई फिल्‍मों में उनके बचपन का किरदार ऋषि कपूर ने ही निभाया था। ऋषि कपूर की ही कोशिशों की बदौलत पाकिस्‍तान की सरकार ने कपूर खानदान की पुश्‍तैनी हवेली जो खैबर पख्‍नून्‍ख्‍वां के पेशावर में है उसको एक संग्रहालय बनाने का फैसला लिया था। इस हवेली से आज भी न सिर्फ कपूर खानदान बल्कि पाकिस्‍तान की भी कई यादें जुड़ी हैं। यहां पर उनके पिता राजकपूर का बचपन बीता था। यहीं पर उनके दादा पृथ्‍वीराज कपूर ने बचपन से लेकर अपनी जवानी तक के दिन बिताए थे। 1930 में पृथ्‍वीराज कपूर इस हवेली को छोड़कर अपने भविष्‍य को उज्‍जवल बनाने के लिए मौजूदा भारत आ गए थे। आपको बता दें कि ऋषि कपूर के पड़दादा और उनके भी पिता दीवान हुआ करते थे। पेशावर का ये पंजाबी हिंदू परिवार पाकिस्‍तान की शान हुआ करता था।

पेशावर की इसी हवेली के जर्जर होने की खबर जब जब मीडिया के जरिए ऋषि कपूर को मिली तब तब उनकी बेचैनी भी खुलकर सामने आई थी। वर्ष 2016 में जब पाकिस्‍तान के तत्‍कालीन गृहमंत्री शहरयार खान अफरीदी भारत में जयपुर अपने निजी दौरे पर आए तो ऋषि कपूर ने उन्‍हें फोनकर अपनी पुश्‍तैनी हवेली को एक संग्रहालय बनाने की अपील की थाी। इस पर नवंबर 2018 में सकारात्‍मक फैसला लेते हुए पाकिस्‍तान की सरकार ने इसको संग्रहालय बनाने पर अपनी सहमति दी। आपको बता दें कि पेशावर के किस्‍सा ख्‍वानी बाजार की इस हवेली को पहले भी पाकिस्‍तान की सरकार ने राष्‍ट्रीय विरासत के तौर पर घोषित किया हुआ था। इमरान खान की सरकार बनने के बाद देश के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भारतीय पत्रकारों को इस बात की जानकारी दी कि इस हवेली को जल्‍द ही संग्रहालय में तब्‍दील कर दिया जाएगा।

इस हवेली को पृथ्‍वीराज कपूर के पिता दीवान बिशेश्‍वरनाथ कपूर ने 1918-1922 में बनवाया था। देश के विभाजन के बाद 1968 में इस हवेली को एक ज्‍वैलर हाजी खुशाल रसूल ने निलामी में खरीदा था। ऋषिकपूर का इस हवेली से कितना गहरा नाता था इसका अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि जब 1990 में वो इसको देखने पेशावर गए थे तब वहां से वो इसकी मिट्टी अपने साथ लेकर आए थे। ऋषि कपूर बेहद जमीन से जुड़े हुए इंसान थे। उन्‍हें कभी न तो सफल एक्‍टर होने का गुमान हुआ न ही एक ऐसा परिवार का सदस्‍य होने का गुमान रहा जिसकी आन-बान और शान कभी फिकी नहीं पड़ी। आज जब वो हमारे बीच नहीं हैं तो मालूम होता है कि इतिहास का एक चैप्‍टर पूरी तरह से क्‍लोज हो चुका है।

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