India-China Border Tension News: चालबाज चीन को चुकानी होगी गुस्ताखी की कीमत

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 India-China Border Tension News समूची दुनिया आज द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अपने सबसे संकटग्रस्त और अस्थिरता के काल से गुजर रही है। चीन में पैदा हुआ कोरोना विषाणु पूरी दुनिया में फैल कर मानव जीवन और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहा है। चीन की अनेक हालिया हरकतों से उसकी अनियंत्रित आक्रामकता और विस्तारवाद साफ झलकते हैं। चीन ने सुनियोजित तरीके से भारत की भौगोलिक सीमाओं का उल्लंघन किया है। केवल भारत ही नहीं जापान, वियतमान, भूटान और यहां तक कि रूस के साथ भी चीन ने अपने सीमा विवादों को हाल ही में एक नीति के तहत गरमाया है। चीन के इस रवैये की जड़ें उसकी आतंरिक अस्थिरता में हैं।

चीन की सरकार द्वारा अपने पड़ोसी देशों से सीमा विवादों को तूल देकर जनता का ध्यान भटकाने का प्रयास किया जाना किसी को भी आश्चर्य में नहीं डालता है। भारत की सीमाओं का अतिक्रमण करके चीन ने जबरदस्ती विवाद मोल लिया है ताकि इसी बहाने अपने देश के लोगों को चीन की सरकार के समर्थन में खड़ा करने का प्रयास कर सके। इस प्रयास में चीन की सरकार को कितनी सफलता मिली यह साफ नहीं हुआ है, लेकिन इस दुस्साहस की भारी कीमत चीन को चुकानी पड़ेगी। भारत में चीन से आयातित उत्पादों के बहिष्कार की हवा चली है। दुनिया की फैक्ट्री कहे जाने वाले चीन के लिए आर्थिक बहिष्कार एक बहुत बड़ा झटका होगा, क्योंकि निर्यात कम होने से उसका औद्योगिक उत्पादन कम होगा जिससे न सिर्फ उसकी अर्थव्यवस्था को घाटा होगा, बल्कि सामाजिक संतुलन भी बिगड़ेगा।

भारत-चीन सीमा विवाद की पृष्ठभूमि : यदि सिर्फ भारत और चीन के बीच उठे द्विपक्षीय सीमा विवाद पर एक नजर डालें तो हम यह देखते हैं कि वर्तमान समय भारत चीन संबंधों में 1962 के बाद से सर्वाधिक तनाव का काल है। वैसे मौजूदा विवाद भले ही लद्दाख की गलवन घाटी में चीन के अतिक्रमण के कारण हुआ हो, लेकिन हमें चीन के संबंध में अपनी सोच को सिर्फ मौजूदा विवाद तक सीमित नहीं रखना चाहिए। चीन ने पिछले सात दशकों में अनगिनत बार भारतीय सीमाओं का उल्लंघन किया है। भारत और चीन दोनों ही उभरती हुई शक्तियां हैं। लेकिन विश्व पर वर्चस्व स्थापित करने की इच्छा रखने वाला चीन अपने पड़ोस में ही एक अन्य उभरती हुई शक्ति के अस्तित्व से परेशान हो जाए, यह मान लेने के पर्याप्त कारण हैं। चीन द्वारा पाकिस्तान को अपना हर मौसम का साथी बताना और उसे भारत के खिलाफ हरसंभव तरीकों से मजबूत करना एक स्पष्ट साक्ष्य है। इसके अलावा भी चीन द्वारा भारत में आतंरिक विप्लव पैदा करने के प्रयासों का लंबा इतिहास है।

 

चीन और भारत के संबंधों को लेकर हमेशा यह बात स्पष्ट रूप से मान कर चलना चाहिए कि भारत को आंतरिक समस्याओं में उलझाना व भारत के विकास को बाधित कर इसे कमजोर बनाना चीन का दीर्घकालीन लक्ष्य है। जब हम चीन भारत संबंधों की बात करते हैं तो यह याद रखना होगा कि हम भारत जैसे लोकतांत्रिक और सर्वकल्याण की सोच रखने वाले राष्ट्र के साथ एक ऐसे देश के संबंधों की बात कर रहे हैं, जहां एक साम्यवादी सत्ता-प्रतिष्ठान है जो विश्व भर में सामरिक, आर्थिक और राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है।

हमें यह देखना चाहिए कि चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार के स्थापित होने के बाद से ही चीन एक अतिशय विस्तारवादी और दूसरे देशों की भौगोलिक सीमाओं का सम्मान नहीं करने वाली दुस्साहसी शक्ति का रूप ले चुका है। चीन के साथ जितने देशों की नैसर्गिक सीमाएं हैं, उनमें से लगभग सभी के साथ उसके सीमा विवाद हैं। ज्यादातर सीमा विवादों का जन्म 1949 से चल रहे कम्युनिस्ट शासनकाल में ही हुआ है।

 

वहीं दूसरी ओर भारत एक ऐसा देश है, जो वसुधैव कुटुंबकम की सोच में विश्वास करता है और ऐतिहासिक रूप से शांतिप्रिय रहा है। भारत ने कभी भी दूसरे देशों पर कब्जे के इरादे से कोई हमला नहीं किया है। आज भले ही चीन अपनी आतंरिक दुश्वारियों से तंग आकर विवाद पैदा करना और ध्यान भटकाना चाहता हो, परंतु हमें उसका मूल स्वभाव कभी नहीं भूलना चाहिए। चीन ने भारतीय सीमाओं का अतिक्रमण करके जो गलती की है, इसकी उसे भरपूर सजा मिलनी चाहिए। भारतीय सेना जहां चीन को बुलेट से उत्तर देने के लिए तैयार है, वहीं भारत के आम नागरिकों को भी अपने अपने वॉलेट से चीन को उत्तर देना चाहिए। भारत सरकार जहां चीन को कूटनीतिक चोट देगी, वहीं आम जनता को चाहिए कि वह चीन को आर्थिक चोट दे, ताकि उसका हमारी समग्र ताकत का एहसास हो।

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