जीवाश्म ईंधन की खपत को कम करना आवश्यक

4

ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ने की रफ्तार थमने का नाम नहीं ले रही है जो शिखर पर पहुंचने के कगार पर है. कार्बन डाइऑक्साइड का औसत वार्षिक स्तर 2022 में रिकार्ड 417.9 पीपीएम पर पहुंच गया है. जलवायु परिवर्तन में इसका सबसे अधिक योगदान है. इसके साथ-साथ मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के स्तर में भी रिकॉर्ड बढ़ोतरी खतरनाक संकेत हैं. इन सबका दोषी मनुष्य ही है. उसके द्वारा उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों, वनों का विनाश- जिसकी वजह से कार्बन सोखने की पर्याप्त क्षमता में कमी आयी है, साथ ही जीवाश्म ईंधन- जिसकी सबसे बड़ी भूमिका है, के कारण ही धरती 1.32 डिग्री गर्म हुई है. यहां ग्रीनहाउस गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड की हिस्सेदारी 78 प्रतिशत है, जो तापमान वृद्धि का सबसे बड़ा कारक है.

वर्ष 2023 की बात करें, तो अक्तूबर महीने की गर्मी ने अभी तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं. सितंबर में दक्षिणी अमेरिका में रिकॉर्डतोड़ गर्मी पड़ी. न्यूयॉर्क में रिकॉर्ड बारिश हुई. महासागरों का तापमान बढ़ा. अत्याधिक तापमान के कारण दुनिया में लू और जंगल की आग की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि देखने को मिली. वैज्ञानिकों ने 2023 के रिकार्ड गर्म वर्ष होने की आशंका जतायी थी. यह भी कि इस वर्ष कार्बन प्रदूषण उच्चतम स्तर पर पहुंच जायेगा. इसमें कोयले से कार्बन उत्सर्जन का अहम योगदान है. वर्ष 2022 में अकेले कोयले से कार्बन उत्सर्जन 15.5 बिलियन टन के करीब था, जो तेल और प्राकृतिक गैस सहित किसी भी अन्य जीवाश्म ईंधन से अधिक था. वर्ष 2023 में उसमें और इजाफा हुआ है. सिसरो के निदेशक ग्लेन पीटर्स की मानें, तो कार्बन उत्सर्जन में पहले की तुलना में वृद्धि जारी है.

यदि वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री की सीमा पार कर गया तो बाढ़, सूखा, तूफान, भीषण बारिश, भीषण गर्मी और भयंकर लू जैसी घटनाओं में बढ़ोतरी होगी. पानी की कमी के चलते पैदावार में गिरावट आयेगी, दुनिया में भूखे लोगों की तादाद में इजाफा होगा, जो भयावह हालात पैदा करेंगे, क्योंकि वर्तमान में दुनिया के 48 देश भोजन की कमी का भीषण सामना कर रहे हैं. ग्लेशियरों के पिघलने की दर में और तेजी आयेगी जिसे रोकना मुश्किल हो जायेगा.

बीते वर्ष संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया था कि वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की कोशिश सफल होती नजर नहीं आ रही. मौजूदा लागू नीतियों के आधार पर दुनिया के औसत तापमान में 2.8 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि की संभावना है. यह निर्धारित लक्ष्य से दोगुना है. वहीं अमेरिकी मौसम एजेंसी नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन ने अगले वर्ष सुपर अल नीनो की भविष्यवाणी की है. ऐसी दशा में समुद्र की सतह का तापमान औसत से कम से कम 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म होगा. तापमान के दो डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ जाने की 30 प्रतिशत से अधिक संभावना है.

वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए जीवाश्म ईंधन की खपत को कम करना समय की सबसे बड़ी मांग है. चिंता इस बात की है कि यदि जलवायु खतरों से निपटने के प्रयास इसी ढर्रे पर जारी रहे, तो 2024 आपदाओं का वर्ष होगा और सदी के अंत तक तापमान में बढ़ोतरी तीन डिग्री तक पहुंच जायेगी. इससे समूची दुनिया को जलवायु आपातकाल का सामना करना पड़ सकता है. दुनिया की इस स्थिति के लिए पेरिस समझौते के क्रियान्वयन में विकसित देशों, विशेषकर अमेरिका की हीला-हवाली पूरी तरह जिम्मेदार है.

Source link

Get real time updates directly on you device, subscribe now.