CSR के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं हों कंपनियां, यह होनी चाहिए अंतरात्मा की पुकार: प्रेमजी

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आइटी कंपनी विप्रो के संस्थापक और देश के सबसे बड़े परोपकारियों में एक अजीम प्रेमजी ने सीएसआर की कानूनी बाध्यता को गैरजरूरी बताया है। पिछले वर्ष कुल 7,904 करोड़ रुपये दान करने वाले प्रेमजी ने शनिवार को कहा कि कंपनियों को कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं किया जाना चाहिए।

ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन (एआइएमए) के एक कार्यक्रम में प्रेमजी ने कहा, ‘समाज के प्रति परोपकार या दान की भावना अंतरात्मा की पुकार होनी चाहिए, इसे बाहर से किसी कानून के माध्यम से थोपा जाना नहीं चाहिए। हालांकि यह मेरा व्यक्तिगत विचार है।’

वर्तमान में कंपनियों के लिए सीएसआर एक कानूनी बाध्यता की तरह है। प्रेमजी का कहना था कि व्यक्तिगत परोपकार को कंपनियों के सीएसआर से अलग देखा जाना चाहिए। कोविड-19 महामारी के दौर को उन्होंने सचेत हो जाने वाला बताते हुए कहा कि इस अवधि ने समाज में समानता और न्याय लाने के लिए स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों पर निवेश का महत्व बताया है।


उन्होंने कहा, ‘जब मैं कार्यक्षेत्रों का दौरा करता हूं और वहां अपनी टीम या सहयोगियों की टीम को पूरे मनोयोग से लोगों का जीवन-स्तर सुधारने के लिए खुद को समर्पित करते देखता हूं तो संतुष्टि का इससे उच्च स्तर नहीं हो सकता है।’

उल्लेखनीय है कि प्रेमजी ने वनस्पति तेल बनाने वाली कंपनी विप्रो को अरबों डॉलर की आइटी सर्विसेज कंपनी का रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे देश के सबसे धनी व्यक्तियों और सबसे ज्यादा दानदाता के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को जहां भी और जब भी मौका मिले, परोपकार करना चाहिए। जरूरत पड़े तो लोग इसके लिए संस्था बनाएं और कार्यक्रमों को समर्थन दें।

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