Ayodhya Ram Mandir News: चमत्कारी नेतृत्व क्षमता से जगाया रामभक्तों में उत्साह
Ayodhya Ram Mandir News: चमत्कारी नेतृत्व क्षमता से जगाया रामभक्तों में उत्साह
अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन में महंत नृत्यगोपालदास और डॉ. रामविलासदास वेदांती ने कुशलता से इसकी कमान संभाली।
अयोध्या वर्ष 2003 में महंत रामचंद्रदास परमहंस के साकेतवास के बाद राममंदिर आंदोलन के फलक पर नेतृत्व रिक्तता जैसे हालात बने तो महंत नृत्यगोपालदास और डॉ. रामविलासदास वेदांती ने कुशलता से इसकी कमान संभाली। अपनी नेतृत्व क्षमता के दम पर कुछ ही समय में यह दोनों दिग्गज संत मंदिर आंदोलन का पर्याय बन गए। महंत नृत्यगोपालदास यदि केंद्र में थे, तो डॉ. वेदांती पूरक की भूमिका में आंदोलन को आगे बढ़ाते रहे। केंद्र की जिस अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से राममंदिर निर्माण की दिशा में ठोस पहल की अपेक्षा थी, वो रामजन्मभूमि क्षेत्र का पुरातात्विक उत्खनन ही करा सकी थी और 2004 के चुनाव में कांग्रेस का गठबंधन सत्ता में आ गया। आंदोलन की ऊर्जा अब विधिक दावेदारी के रूप में जरूर उन्मुख हो चली थी, पर आम रामभक्तों के बीच संशय के बादल मंडराने लगे थे। तब इन दोनों संतों ने ही पुन: रामभक्तों के मन में यह विश्वास पैदा किया कि मंदिर आंदोलन की गति रुकने वाली नहीं है।
संतों की शीर्ष त्रिमूर्ति के अहम घटक
रामनगरी की शीर्ष पीठ मणिरामदास जी की छावनी के महंत नृत्यगोपालदास की गणना रामनगरी ही नहीं पूरे देश के चुनिंदा धर्माचार्यों में होती है। 11 जून 1938 को भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा के ग्राम करहला में जन्मे महंत नृत्यगोपालदास मात्र 15 वर्ष की आयु में अयोध्या की मणिरामदास जी की छावनी आए। इसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। गुरु और छावनी के तत्कालीन महंत राममनोहरदास ने प्रखर विद्यार्थी के तौर पर उन्हेंं काशी पढऩे भेजा। एक दशक बाद जब वो अध्ययन पूर्ण कर अयोध्या लौटे, तो उन्हेंं छावनी की महंती प्रदान की। नृत्यगोपालदास ने छावनी रूपी आध्यात्मिक विरासत को नित्य नए प्रयत्नों-प्रकल्पों से सज्जित किया। उनकी अगुवाई में ही वाल्मीकि रामायण के सभी 24 हजार श्लोकों से सजा वाल्मीकि रामायण भवन अयोध्या के प्रतिनिधि वास्तु के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। 1984 में मंदिर आंदोलन की शुरुआत के साथ संतों की शीर्ष त्रिमूर्ति सामने आई। इनमें तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ एवं महंत रामचंद्रदास परमहंस के अलावा तीसरे नृत्यगोपालदास ही थे। उनका आश्रम शुरू से ही कारसेवकों की आश्रय स्थली रहा। 2003 में रामचंद्रदास परमहंस के साकेतवास के बाद रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष का दायित्व संभालने वाले महंत नृत्यगोपालदास इसी वर्ष 19 फरवरी से मंदिर निर्माण के लिए गठित श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष का दायित्व भी संभाल रहे हैं। मंदिर आंदोलन की शुरुआत से लेकर उसे लक्ष्य तक पहुंचाने में वे अग्रणी नायक के रूप में सक्रिय हैं।
मंदिर के लिए 25 बार की जेल यात्रा
रामजन्मभूमि न्यास के सदस्य एवं दो बार सांसद रहे डॉ. रामविलासदास वेदांती को राममंदिर से सरोकार विरासत में मिला। मध्यप्रदेश स्थित रीवा जिला के समृद्ध सांस्कृतिक परिवेश वाले परिवार में पैदा हुए वेदांती मात्र 15 वर्ष की आयु में अयोध्या आए। उन्होंने हनुमानगढ़ी के जिन गुरु अभिरामदास के मार्गदर्शन में साधु जीवन अंगीकार किया, वो 22-23 दिसंबर 1949 की रात विवादित ढांचे के नीचे रामजन्मभूमि पर रामलला के प्राकट्य प्रसंग की केंद्रीय भूमिका में थे। हनुमानगढ़ी स्थित गुरु आश्रम में रहने की शुरुआत के साथ वेदांती को रामलला की सेवा-पूजा का अवसर मिला। कालांतर में वे इस अवसर से वंचित हुए, तो मंदिर आंदोलन की अगुवाई कर उन्होंने रामलला से अपना सरोकार प्रकट किया। 1984 में रामजन्मभूमि मुक्ति का संकल्प लेने से पूर्व विहिप ने राम-जानकी रथयात्राएं निकालीं, तो इन यात्राओं को कामयाब बनाने का दायित्व वेदांती ने संभाला। इसके बाद वे राममंदिर के लिए 25 बार जेल गए।
मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास, कारसेवा और ढांचा ध्वंस के समय भी नायक की भूमिका में रहे। ढांचा ध्वंस के मामले में वे आरोपी भी हैं। 1996 और 98 में भाजपा के टिकट पर लगातार दो बार लोकसभा सदस्य चुने गए वेदांती की गिनती मंदिर के लिए मुखर रहने वाले चुनिंदा नेताओं में होती रही है। उनके शिष्य एवं उत्तराधिकारी डॉ. राघवेशदास कहते हैं, 67 वर्ष की उम्र में भी गुरुदेव में रामलला के लिए युवाओं जैसा उत्साह है और मंदिर निर्माण की बेला में वे कृत-कृत्य हो रहे हैं।