2020 Pulitzer Prize: एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक ने राहुल के ट्वीट पर उठाए सवाल, कहा- तीनों पत्रकार न लें पुरस्कार.

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नई दिल्ली ,2020 Pulitzer Prize: तीन भारतीय फोटोग्राफरों मुख्तार खान, यासीन डार और चन्नी आनंद को इस बार पुलित्जर पुरस्कारों से नवाजा गया है। एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक प्रो. जगमोहन सिंह राजपूत का। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि अगर ये तीनों पुरस्कार स्वीकार करते हैं तो ये उन लोगों से पुरस्कार लेंगे जो देश की एकता पर आक्रमण कर रहे हैं जो देश की अखंडता को मानते ही नहीं। जो संस्था यह पुरस्कार दे रही है वह कश्मीर को भारत द्वारा कब्जा किया क्षेत्र बता रही है। उसे भारत के किसी भी हिस्से के बारे में इस तरह की बात कहने का कोई हक नहीं है। भारत के प्रत्येक नागरिक का यह दायित्व है कि वह इस तथ्य को स्वीकार न करें। चाहे जिसको पुरस्कार मिले या न मिले।

राहुल गांधी के ट्वीट पर उठाए सवाल

पुरस्कारों की घोषणा के बाद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट करके फोटोग्राफरों को बधाई दी। लेकिन यही राहुल गांधी उस समय कहां थे जब मुझे यूनेस्को ने प्रतिष्ठित जॉन एमोस कामेनियस पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की थी। ये पुरस्कार विद्वानों की एक जूरी द्वारा दिए जाते हैं। यह बात सन 2004 की है। पुरस्कारों के ऐलान के बाद यूनेस्को ने बकायदा समारोह में शामिल होने के लिए टिकट तक भेजा था। इसी समय संप्रग यानी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सत्ता में आई। एक पत्र यूनेस्को को भेजा गया और कहा गया कि प्रो. जेएस राजपूत को पुरस्कार न दें, क्यों कि उन्होंने भारतीय संविधान में वर्णित मूलभूत मूल्यों का उल्लंघन किया है। उस समय वरिष्ठ वकील एलएम सिंघवी (अभिषेक मनु सिंघवी के पिता) बतौर पैरवीकार सुप्रीम कोर्ट गए। उन्होंने मुझसे कहा था कि यह गलत निर्णय है। वह सात सालों से सुप्रीम कोर्ट नहीं गए थे लेकिन मेरे लिए सर्वोच्च अदालत गए। मेरा केस लड़ा और आखिरकार सर्वोच्च अदालत ने मेरे पक्ष में फैसला सुनाते हुए सरकार पर जुर्माना लगाया और दो महीने के भीतर निर्णय लेने को कहा। बाद में सन 2009 में आयोजित समारोह में मुझे यूनेस्को द्वारा सम्मानित किया गया।

दरअसल, मैंने सभी धर्मों के मूलतत्वों को बच्चों को पढ़ाने की वकालत की थी। मैंने कहा था कि हम धर्मों के अनुष्ठान नहीं पढ़ाएंगे बल्कि उनका दर्शन पढ़ाएंगे। पांच चीजें सत्य, अहिंसा, शांति, सदअचारण और भाईचारा सभी धर्मों में मिलता है। इसलिए इन्हें पढ़ाना जरूरी थी। इससे देश का सामाजिक और पंथिक सदभाव बढ़ता। यही बात सुप्रीम कोर्ट ने मेरे मामले की सुनवाई के दौरान भी कही थी। सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि यह सही काम है, यह अगर 50 साल पहले हो जाता तो देश में सदभाव और अधिक होता। उस समय राहुल गांधी ने ट्वीट कर मुझे बधाई भी नहीं दी थी।

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