2011 में नंदीग्राम के ही मुद्दे को भुनाकर सत्‍ता पर काबिज हुई थीं ममता, जानें- इनसाइड स्‍टोरी

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पश्चिम बंगाल में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे वहां पर राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गई हैं। लगातार दो बार राज्‍य की सत्‍ता पर काबिज तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ने इस बार नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। इसलिए नंदीग्राम की अहमियत बढ़ गई है। नंदीग्राम को सही मायने में राज्‍य में ममता के लिए ट्रंप कार्ड कहा जा सकता है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि ये वही विधानसभा क्षेत्र है जहां के आंदोलन को हवा देकर ममता राज्‍य की राजनीति में उतरी थीं, और बाद में न सिर्फ कामयाबी के शिखर पर पहुंची बल्कि इसके जरिए उन्‍होंने राज्‍य से वर्षों पुरानी वाम दल की सरकार को भी उखाड़ फेंका था।

कड़क स्‍वभाव है पहचान

ममता हमेशा से ही अपने कड़क स्‍वभाव को लेकर सुर्खियों में रही हैं। बात चाहे 1997 में कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के गठन की हो या फिर मौजूदा समय में केंद्र से दो-दो हाथ करने की, यही दर्शाता है। आपको बता दें कि कांग्रेस और एनडीए दोनों की ही केंद्र सरकार में वो मंत्री भी रह चुकी हैं। कांग्रेस से अलग होने के बाद 2005 के कोलकाता नगर निगम चुनाव में उनकी पार्टी को करारा झटका लगा था। इसके बाद 2006 में जब राज्‍य में विधानसभा चुनाव हुए तब उनकी पार्टी के पहले से कम सदस्‍य जीत दर्ज करने में नाकाम साबित हुए थे।

नंदीग्राम और सिंगुर

इसी दौरान हुए सिंगुर समेत नंदीग्राम आंदोलन ने उनकी राजनीति की राह को आसान करने में मदद की। 20 अक्‍टूबर 2005 को उन्‍होंने तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की औद्योगिक नीतियों को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू किया। ये प्रदर्शन इंडोनेशिया की सलीम ग्रुप ऑफ कंपनीज को हावड़ा में कई एकड़ किसानों की भूमि देने के खिलाफ था। जब कंपनी के सीईओ कोलकाता आए तो ममता समेत सभी पार्टी कार्यकर्ताओं ने उनके उनके काफिले के साथ-साथ चलते हुए ताज होटल तक उनके खिलाफ नारेबाजी की थी।


राज्‍य की सरकार के खिलाफ बिगुल

नवंबर 2006 में उन्‍होंने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा टाटा मोटर्स को किसानों की जमीन मुहैया करवाने का जबरदस्‍त विरोध किया। इसके खिलाफ सिंगुर में सरकार विरोधी एक बड़ी रैली का आयोजन किया गया। लेकिन ममता बनर्जी को वहां तक पहुंचने नहीं दिया गया और रास्‍ते में ही पुलिस ने रोक लिया। इसके बाद ममता ने वापस विधानसभा पहुंचकर सरकार के खिलाफ विरोध शुरू किया। इस दौरान उन्‍होंने 12 घंटे के बंद का आह्वान भी किया। विधानसभा में सरकार के विरोध में टीएमसी सदस्‍यों का जबरदस्‍त उत्‍पात देखा गया। विधानसभा के फर्नीचर को तोड़ा गया और माइक निकालकर फेंक दिए गए। 14 दिसंबर 2006 को एक बार फिर से टीएमसी ने सरकार के खिलाफ हड़ताल का आह्वान किया।


राज्‍य सरकार की निंदा

2007 में एक बार फिर से इंडोनेशिया की कंपनी को नंदीग्राम में जमीन देने पर वहां किसानों का जबरदस्‍त हंगामा देखने को मिला। पूर्वी मिदनापुर में इसके चलते राज्‍य सरकार को सुरक्षाकर्मियों की संख्‍या बढ़ानी पड़ी थी। सरकार ने स्‍पेशल इकनॉमिक जोन में करीब 10 हजार एकड़ जमीन इस कंपनी को देने का एलान किया था। इसके खिलाफ जब किसानों का आक्रोश बढ़ा तो इस पर काबू पाने के लिए पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा। इसमें 14 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 70 घायल हुए थे। इस घटना की हर तरफ निंदा हुई थी।


2011 में मिली एकतरफा जीत

केंद्र की तत्‍कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने इस घटना को सरकार द्वारा प्रायोजित हिंसा करार दिया था। सीबीआई की जांच में भी ये बात सामने आई थी कि सीपीआई एम की सरकार ने प्रदर्शन को इस कदर हिंसक बनाया था। ममता बनर्जी ने इस मौके को हाथ से नहीं जाने दिया और वो सरकार के खिलाफ अपनी मुहिम को लगातार हवा देती रहीं। इसका फायदा उन्‍हें वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में मिला जब उनकी पार्टी ने राज्‍य में


एकतरफा जीत हासिल की।

पहली महिला मुख्‍यमंत्री

ये जीत इसलिए भी एतिहासिक थी क्‍योंकि यहां से उन्‍होंने 34 वर्षों पुरानी सीपीआईएम की सरकार को उखाड़ फेंका था। इससे पहले कोई भी पार्टी ऐसा करने में सफल नहीं हो सकी थी। इसके बाद ममता राज्‍य की सत्‍ता पर काबिज हुई थीं। सत्‍ता में आने के बाद उन्‍होंने सिंगुर के किसानों को उनकी 400 एकड़ की जमीन वापस कर दी थी। आपको बता दें कि ममता राज्‍य की पहली महिला मुख्‍यमंत्री भी हैं।

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