ज़िम्मेदारी, संवेदनशीलता और स्त्रीवाद के बारे में बात करती है ‘सम्बन्ध’

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सम्बन्ध, आचार्य प्रशांत द्वारा रचित 50 से अधिक किताबों में से एक है। आचार्य प्रशांत उपनिषदों तथा वेदान्त के विशेषज्ञ तो हैं ही, साथ-साथ मानव सम्बन्धों पर भी एक अद्भुत गहराई के साथ लिखते हैं। सम्बन्ध पुस्तक इसी गहराई का प्रमाण है।

इस किताब में आचार्य प्रशांत केवल प्रेमी-प्रेमिका या पति-पत्नी के सम्बन्धों की नहीं, बल्कि एक मनुष्य जीवन के हर प्रकार के सम्बन्धों के बारे में बात करते हैं। हमारे मित्रों से, हमारे परिवार से, हमारे कार्यस्थल के लोगों से, रिश्तेदारों से, अपने आप से और यहाँ तक की, पशुओं से भी हमारे संबंधों की गुणवत्ता को सुधारने के बारे में बात करते हैं।

सम्बन्धों के ऊपर कई किताबें लिखी गई हैं, और ज़ाहिर सी बात है कि यह विषय नया नहीं है। परन्तु, आचार्य प्रशांत ने इस विषय को एक नए एवंम अग्रणी नज़रिये से देखा है। अगर ‘प्रेम’ की बात करें, तो वो प्रेम के होने और न होने – दोनों के बारे में बात करते हैं और एक खुला संवाद सामने रखते हैं।


कुल ४० भागो में बांटी गई यह किताब, हर प्रकार के सम्बन्ध के बारे में बात करते हुए पाठक को अपने निजी सम्बन्धों को एक नए तरीके से देखने की क्षमता प्रदान करती है। इसी के साथ-साथ मजबूती, आत्मबल तथा मानव सम्बन्धों के विज्ञान की समझ भी देती है।

किताब में कई ऐसे विषय, जैसे कि ज़िम्मेदारी, संवेदनशीलता, स्त्रीवाद, काम इत्यादि भी देखने को मिलते हैं, जो सामने से तो पुस्तक के केंद्रीय विषय से मिलते हुए नहीं दिखते लेकिन आचार्य प्रशांत बखूबी उन्हें सम्बन्ध के मूल विषय के साथ जोड़ देते हैं। सब से अच्छी बात यह है कि यह किताब आज-कल की बोल-चाल की भाषा में लिखी गयी है और इसमें रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से उदहारण लिए गए हैं जो आसानी से समझ भी आते हैं।


क्योंकि आचार्य प्रशांत गहरे ध्यान के एक बहाव के साथ सोचते, बोलते और लिखते हैं – कई बार उन की गति के साथ चल पाना मुश्किल हो जाता है, और पाठक को पाठन की गति को थामना पड़ता है। इसके बावजूद, सम्बन्धओं के विषय में इस नए तरीके से लिखना वाकई लाजवाब है।

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