बर्ड फ्लू के संक्रमण से बचाएगी सावधानी, ये लक्षण दिखें तो हो जाएं सतर्क

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देश में बर्ड फ्लू मध्य प्रदेश को मिलाकर सात राज्यों में फैल चुका है। बर्ड फ्लू या एवियन इनफ्लुएंजा एक जूनोटिक बीमारी है अर्थात जानवरों में बहुतायत में पाई जाती है। कभी-कभी इसका संक्रमण इंसानों में भी देखने को मिलता है। यह इनफ्लुएंजा वायरस का एक प्रकार है, जो पक्षियों में एक से दूसरे में हवा के जरिए फैलता है। संक्रमण की वजह से प्रभावित पक्षियों की नाक, गले और सांस नली में सूजन आ जाती है। सूजन की वजह से उन्हें सांस लेने में कठिनाई होती है और इससे उनकी मौत हो जाती है। कौआ, मुर्गी, प्रवासी पक्षी आदि इससे ज्यादा प्रभावित होते हैं।

इनफ्लुएंजा वायरस की सबसे बड़ी विकृति है कि इसमें दो तरह के परिवर्तन लगातार होते रहते हैं। एक एंटीजनिक शिफ्ट, जिसके तहत एंटीजन की प्रकृति में बड़ा परिवर्तन होता है और दूसरा एंटीजनिक डिफ्ट, जिसमें छोटे-छोटे प्रकार के म्यूटेशन (जीन में बदलाव) वायरस में लगातार होते रहते हैं। यही कारण है कि इनफ्लुएंजा में कोई भी वैक्सीन लंबे समय तक कारगर नहीं होती है। जब कोई पक्षी या पक्षियों का समूह एवियन इनफ्लुएंजा वायरस के संक्रमण से ग्रस्त होता है तो उनके संपर्क में आने वाले इंसान तक यह वायरस पहुंच सकता है और उन्हें भी बीमार कर सकता है। वायरस में म्यूटेशन की वजह से कभी-कभार ऐसा भी हो सकता है कि पक्षियों में फैलने वाले वायरस में इंसानों में फैलने की क्षमता विकसित हो जाए। बीमारी जितनी तेजी से पक्षियों में फैलती है, वायरस में म्यूटेशन भी उतनी ही तेजी से होता है। बर्ड फ्लू का संक्रमण फैलने पर इंसानों को भी अलर्ट कर दिया जाता है, जिससे यह बीमारी इंसानों में न फैले।


ये लक्षण दिखें तो हो जाएं सतर्क : किसी तरह से पक्षियों के संपर्क में आने पर यदि सर्दी, खांसी, बुखार, गले में दर्द और सांस लेने में तकलीफ हो तो डॉक्टर को दिखाएं। चिकित्सक की सलाह के बिना कोई दवा नहीं खानी चाहिए। यदि संक्रमण है तो पूरी तरह से चिकित्सकीय दिशा निर्देशों को अपनाएं। अभी इंसानों में यह बीमारी नहीं मिली है, लेकिन बेफिक्र रहने की जरूरत नहीं है। इंसानों से इंसानों में यह बीमारी फैलने पर बहुत मुश्किल हो सकती है। जिस जगह पर पक्षी मरे मिले हों वहां सेनेटाइजेशन किया जाना चाहिए। शहर और गांव के लोगों को इस तरह से जागरूक किया जाना चाहिए कि वह पूरी सतर्कता बरतें। पक्षी मरे मिलें तो कंट्रोल रूम को सूचित करें। संक्रमण को रोकने के लिए पोल्ट्री फार्म में एक भी मुर्गा-मुर्गी इससे संक्रमित मिलते हैं तो वहां के साथ ही आसपास के एक किलोमीटर के दायरे में आने वाले पोल्ट्री फार्म में मुर्गे-मुíगयों को मार दिया जाता है।


पोल्ट्री उत्पादक सावधानी रखें

किसी बाहरी व्यक्ति को पोल्ट्री फार्म में प्रवेश न करने दें। हो सकता है कि वह व्यक्ति संक्रमित पक्षियों की बीट, पंख, बॉडी, फ्लूड आदि के संपर्क में आया हो, जिससे वह बीमारी का वाहक बन सकता है
प्रवासी पक्षियों को पोल्ट्री फार्म या आसपास बैठने से रोकें
पोल्ट्री फार्म में मुर्गे-मुíगयों के मृत पाए जाने पर इसकी सूचना फौरन पशुपालन विभाग के अधिकारियों और प्रभावित राज्यों में बनाए गए विशेष कंट्रोल रूम को दें
चिकन कारोबारी ध्यान दें


मास्क और दस्ताने पहनकर पक्षियों को छुएं
पक्षियों के पंख, बीट, मांस आदि चीजों को नगर निगम के विशेष दस्ते को दें याफिर जमीन में गाड़ दें
हाथों को बार-बार साबुन से धोएं
यह सावधानी जरूर अपनाएं

ढाबे में चिकन व अंडे खाते समय ध्यान रखें कि वह पूरी तरह पका हो। संभव हो तो बाहर चिकन का सेवन न ही करें
घर में मुर्गे को काटते वक्त दस्ताने और मास्क पहनें
मुर्गे के पंख व अन्य अंगों को जमीन में गड्ढा खोदकर गाड़ दें
बचाव के लिए ये करें


पक्षियों से दूरी बनाए रखना जरूरी है
मृत या जीवित पक्षियों को उठाने के लिए पीपीई किट, मास्क व व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों का उपयोग करना चाहिए
सेनेटाइजर का उपयोग नियमित रूप से करें
पक्षियों के फूड प्रोडक्ट जैसे चिकन, अंडे आदि का सेवन हो सके तो कुछ दिनों के लिए टाल दें। यदि नहीं टाल सकते हैं तो अच्छी तरह साफ करके 70 डिग्री सेंटीग्रेट पर पकाकर ही खाएं। इस तापमान में बर्ड फ्लू का वायरस मर जाता है
अब तक के मामले: बर्ड फ्लू का मामला सबसे पहले 1996 में चीन में पक्षियों में सामने आया था। 1997 में इस वायरस से इंसानों के चपेट में आने की पुष्टि हुई थी। फरवरी 2005 में बर्ड फ्लू का एच5एन1वायरस महाराष्ट्र व गुजरात में तेजी से फैला था। मार्च 2006 में मध्य प्रदेश भी काफी प्रभावित हुआ था। वर्ष 2007 में मणिपुर व 2008 में बंगाल तथा त्रिपुरा में बर्ड फ्लू के मामले सामने आए थे। वर्ष 2016 में दिल्ली और ग्वालियर के चिड़ियाघर में भी इस बीमारी की पुष्टि हुई थी।

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