पीएम मोदी ने दिया इस साल को आंतरिक खोज के वर्ष के रूप में देखने का संदेश, महिलाओ ने समझा और अपनाया

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कोरोना संकट के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस वर्ष को ‘आंतरिक खोज के वर्ष’ के रूप में देखने के संदेश को देश की महिलाओं ने पूरी सकारात्मकता से समझा और अपनाया। यही कारण रहा कि लाकडाउन के बीच घर-परिवार की बढ़ी जिम्मेदारी की चुनौतियों का वे न सिर्फ सहजता के साथ सामना करने में कामयाब रहीं, बल्कि पारंपरिक विरासत को आगे बढ़ाने के साथ-साथ परिवार के सदस्यों के बीच प्रगाढ़ता को बढ़ाते हुए अपनी पहचान बनाने की राह पर भी आगे बढ़ीं। उन्होंने खुद को परिस्थितियों के अनुरूप ढाला और पूरी तरह से परिवार को समर्पित कर दिया। अपने अंदर की ताकत से कठिन समय को निभा लिया। यह नहीं सोचा कि कल क्या होगा, खुद ही अपना युद्ध जीत लिया…

एक तरफ पूरे परिवार को कोरोना संक्रमण से बचाए रखने की जद्दोजहद और दूसरी तरफ घर के ढेर सारे काम अकेले कधों पर। 2020 में जिंदगी बदल गई महिलाओं की। चौबीसों घंटे काम, फरमाइशें, बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई और असाइनमेंट्स, बुजुर्गों का विशेष ध्यान, परिवार की हाइजीन और इम्युनिटी की चिंता, बच्चों को व्यस्त रखने की चुनौती और जाने क्या क्या…। अगर कामकाजी हैं और वर्क फ्रॉम होम कर रहीं है तो फिर बात ही क्या…।

जिम्मेदारियां बहुत बढ़ गई हैं

खुद को इस तरह बदल लेने की यह क्षमता और काबिलियत शायद महिलाओं से ज्यादा किसी और में हो ही नहीं सकती। होममेकर सुनीता नारंग कहती हैं, कोरोनाकाल से पहले हमारी जिंदगी कुछ और थी और अब कुछ और। कोरोनाकाल से पहले हमारे पास समय था, लेकिन हम अपने लिए जागरूक नहीं थे। हमारी व्यस्तता बहुत बढ़ी है। सबके घर में रहने से काम बहुत बढ़ गया है, लेकिन कोरोना संक्रमण के डर से अब हम भी अपने स्वास्थ्य के बारे में सोचने लगे हैं। पहले खाली समय मिलता था तो आराम करते या किसी से मिल लेते। अब तो जिम्मेदारियां बहुत बढ़ गईं हैं।

ऑनलाइन पढ़ाई एक टास्क

कोविड-19 की बंदिशों के बीच बच्चों की पढ़ाई के लिए निकाले गए उपाय ने महिलाओं के काम को दोगुना कर दिया। घर के काम की तो उन्हेंं आदत थी, लेकिन पहले कभी बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई नहीं करवाई थी। बहुत सी महिलाओं ने इसके लिए खुद को नए सिरे से तैयार किया। अगर छोटे बच्चे की ऑनलाइन कक्षाएं हैं तो भी मां की मुश्किल। उन्हेंं पूरे टाइम उसके साथ बैठना पड़ता है, जो टीचर बोलती हैं उसे समझना और फिर बच्चे को पढ़ाना या होमवर्क व एसाइनमेंट करवाना।

रिलेशनशिप व लाइफस्टाइल एक्सपर्ट रचना खन्ना सिंह कहती हैं, आजकल तो नर्सरी की भी क्लासेज हो रही हैं, जबकि इनका कोई मतलब नहीं है। चार साल का बच्चा स्क्रीन के सामने कैसे बैठेगा? मां को तो सब काम छोड़कर बैठना ही पड़ेगा। इतना होमवर्क मिल रहा है कि उसे करवाना भी मां का टास्क है, लेकिन मां के पास विकल्प ही कहां है। उन्हें अपनी दिनचर्या में से समय निकालकर बच्चे की पढ़ाई में लगना ही पड़ रहा है।

पति को समझ आए पत्नी के काम

दिनभर तुम करती ही क्या हो? बस सोती रहती हो या घूमती रहती हो। ऐसा कहने वाले पुरुषों को कोरोनाकाल में घर पर रहने के दौरान घर की महिलाओं के काम का पता चला है। पानीपत में रहने वाली होममेकर संगीता सचदेवा कहती हैं, इस दौरान घर में सबको पता लगा कि कौन कितना काम करता है। पहले पुरुषों को लगता था कि हम ऑफिस चले गए तो पीछे से क्या किया? अब वे खुद ही देख रहे हैं कि कितना काम होता है घर पर। महिलाएं अपनी जिंदगी का पूरा समय बच्चों और पति के लिए खर्च कर देती हैं।

थोड़ा सा केयरिंग एटीट्यूड बना है। महिलाओं के इस अवैतनिक काम को पहले पुरुष समझ नहीं पाते थे। आंकड़े कहते हैं कि दुनियाभर में महिलाएं पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा अनपेड वर्क यानी ऐसा काम करती हैं जिसके लिए उन्हें कोई आर्थिक भुगतान नहीं किया जाता। भारत में जहां पुरुष रोजाना औसतन 52 मिनट ही ऐसा कोई काम करते हैं, वहीं महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा औसतन 352 मिनट यानी लगभग छह घंटे है। आंकड़े यह भी कहते हैं कि महिलाएं जितना काम घरों में करती हैं, वह भारत की जीडीपी के 3.1 फीसद के बराबर है।

समय निकाला शौक निखारे

इन दिनों महिलाओं की व्यस्तता कितनी भी बढ़ी हो, लेकिन उन्होंने मुस्कराकर परिवार के हर सदस्य की बात सुनी है। धैर्य धारण किया। इतना ही नहीं इस बीच अपने शौक को निखारा, ऑनलाइन कुछ सीखा। नई रेसिपीज सर्च कीं। बच्चों से खूब बातें कीं। सूरत की डॉ. एकता गांधी प्रोफेशन से डेंटिस्ट हैं और हर दिन काफी व्यस्त रहती थीं।

कोरोनाकाल में घर पर मिले समय का उन्होंने पूरा फायदा उठाया। अपने पैशन स्केचिंग को समय दिया। कई ट्यूटोरियल्स से ऑनलाइन सीखने की कोशिश की। एकता कहती हैं, लॉकडाउन से पहले सुबह-शाम तीन-तीन घंटे के लिए क्लिनिक में रहती थी। बाकी का समय घर के कामों में निकल जाता था। पेंसिल से पोट्रेट बनाना मेरा शौक है। चारकोल स्केच बनाती हूं। क्लिनिक में भी कभी समय मिलता तो मैं अपनी कॉपी-पेंसिल निकाल लेती थी। अब तो खुलकर समय मिल रहा है तो मैं ऑनलाइन कक्षाएं देखकर अपनी कला को विकसित करना चाह रही हूं। अच्छी बात यह है कि इस समय सभी कलाकार ऑनलाइन कक्षाएं दे रहे हैं। मैं भी प्रोफेशनल तरीके से स्केचिंग सीखने की कोशिश कर रही हूं। आपदा में भी अवसर निकाले महिलाओं ने।

अब तो घर पर रहना पसंद आता है

गीतिका महेंद्रू, अभिनेत्री

कोविड-19 से पहले मैं काफी ज्यादा बाहर जाया करती थी, दोस्तों से मिलती थी, काफी सोशलाइज रहती थी, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण अब मुझे घर पर ही रहना ज्यादा पसंद आता है। कोविड-19 के बाद मैं परिवार से बहुत जुड़ी हूं और मेरा लाइफस्टाइल काफी अच्छा हुआ है। लॉकडाउन खुलने के बाद ही हमारे शो छोटी सरदारनी का शूट शुरू हो गया था।

पहले हम सेट पर बाहर का खाना खा लिया करते थे, लेकिन अब घर से ही बनवाकर ले जाते हैं। जब मैं अपने घर चंडीगढ़ गई तो मुझे परिवार के साथ समय बिताने का मौका मिला। एक बार तो मुंबई न लौटने का मन हुआ, क्योंकि फैमिली बांडिंग काफी बन गई थी। मां के साथ मैंने कुकिंग भी की। पापा के साथ बागवानी की। भाई के साथ भी काफी टाइम बिताया।

उम्मीद है सब पहले जैसा हो जाएगा

संगीता सचदेवा, होममेकर

हमारी जिंदगी बिल्कुल बदल गई है। पहले बच्चे स्कूल चले जाते थे और पति भी काम पर निकल जाते थे तो हमारे पास खुद को ग्रूम करने या एंटरटेन करने के लिए समय होता था। किचन में भी कुछ नया बनाने का मन रहता था। पहले घर का काम खत्म करके सहेलियों से बात करते, उनसे मिलने चले जाते, शॉपिंग मॉल चले जाते। किटी या गेट-टुगेदर में चले जाते। अपना अच्छा समय गुजारते थे। अब बच्चे भी स्कूल नहीं जा रहे। घर पर ही ऑनलाइन क्लासेज ले रहे हैं। उनके लिए समय निकालना पड़ता है, जो चीजें बच्चे पहले बाहर खाते थे। अब वो घर में ही बनवाते हैं।

पति वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं तो उनके लिए भी चौबीसों घंटे मौजूद रहना पड़ता है। सबकी तैयारी रखनी पड़ती है। पहले तो बच्चों को लंच दिया और पति को ब्रंच तो व चले जाते और रात को ही मिलते। अब तो बच्चों को ट्यूशन भी नहीं भेज सकते। पहले तो बाजार जाने और शॉपिंग के लिए समय रहता था, लेकिन अब तो सोचते हैं कि ऑनलाइन जो मिल रहा है उसे ही मंगा लेते हैं ताकि सुरक्षित रहें। भीड़ में जाकर वायरस के खतरे को मोल लेना ठीक नहीं लगता। हाइजीन की तरफ बहुत ध्यान रखने लगे हैं। कोई बाहर जा रहा है तो ध्यान रखना पड़ता है कि उसने मास्क लगाया है या नहीं, हाथ सेनिटाइज किए हैं या नहीं। साफ-सफाई और स्वाथ्यवर्धक खानपान के प्रति हम सतर्क हुए हैं। उम्मीद कर रहे हैं कि आने वाले साल में सब पहले जैसा हो जाएगा।

सेहत काफी प्रभावित हुई

जीविका शर्मा, इमिग्रेशन कंसल्टेंट

मैं इमिग्रेशन कंसल्टेंट हूं साथ ही टैरो कार्ड इंस्ट्रक्टर हूं। कोरोनाकाल में इमिग्रेशन का काम तो बिल्कुल ही बंद हो गया था। घर पर भी स्वयं सारा काम करना पड़ा। इस दौरान लोग काफी डिप्रेस थे, स्ट्रेस थे तो मुझसे बहुत से लोगों ने टैरो कार्ड कंसल्टेंसी ली और सीखा भी। इससे वे अपनी रीडिंग खुद कर पाए। मेरी मां नहीं हैं। इसलिए पापा, भाई और मैंने घर के काम बांट लिए। इसके पहले हम कुछ काम नहीं करते थे। इस दौरान सामान ठीक नहीं मिला, फल-सब्जी भी सही नहीं मिली। अत: सेहत काफी प्रभावित हुई। काम पर भी बहुत प्रभाव पड़ा।

मुश्किल समय में मजबूत बनी रही

तनाज ईरानी, अभिनेत्री

दरअसल घर की महिला पर ही यह निर्भर करता है कि वह कैसी दिखती है। अगर घर की महिला खुश रहती है तो सब खुश रहते हैं और अगर मां ही शिकायत करने लगे तो पूरा परिवार भी यही सोचने लगता है कि उन पर बहुत दबाव है। मैं कोरोना के दिनों में बहुत मजबूत बनी रही और परिवार के साथ अच्छा समय गुजारा। अब हम सेहत का ज्यादा ध्यान रखते हैं। पहले काढ़ा और हल्दी दूध पर विश्वास नहीं करते थे, लेकिन कोरोनाकाल में मैंने पूरे परिवार को ये सब पीने को दिया।

मैंने अपने मन से बहुत अच्छा खाना बनाकर सबको खिलाया। बहुत काम किया इन दिनों। बच्चों की ऑनलाइन कक्षाओं को भी देखना पड़ता है। हालांकि हमने अच्छी क्वालिटी के दिन गुजारे। हम लोग फिल्में भी देखते रहे। बच्चे इन दिनों काफी खुश रहे। पहले पहल काफी डर गए थे, लेकिन जब पति ने कहा कि हमें वायरस के साथ ही जीना होगा तो हम सामान्य हो गए। मेरे ख्याल से मुश्किल समय में मजबूत बने रहने का प्राकृतिक गुण होता है महिलाओं में।

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