पंजाब-हरियाणा सरकार ने मानी अरविंद केजरीवाल की बात तो खत्म हो जाएगा पराली का प्रदूषण

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नई दिल्ली, दिल्ली-एनसीआर में लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण ने यहां के लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। जहां एक ओर वायु प्रदूषण के चलते सांस के रोगियों में इजाफा हो रहा है, वहीं इससे बुजुर्गों के साथ गर्भवती महिलाओं और उनके गर्भ में पल रहे शिशुओं पर भी प्रभाव पड़ रहा है। इस बीच दिल्ली में किसानों ने ‘पूसा डीकम्पोजर’ का ट्रायल शुरू कर दिया है, जिसके बेहद सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं। ऐसे में अगर पंजाब और हरियाणा की सरकारों ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की बात मान ली तो अगले साल से दिल्ली-एनसीआर में वायू प्रदूषण काफी कम हो जाएगा। दरअसल, पराली (फसल के अवशेष) जलाने से हर साल हवा में घुलने वाले ज़हर की समस्या से निपटने के लिए दिल्ली सरकार ने यह कम लागत वाली पहल शुरू की है। दिल्ली के कई किसानों ने इसे अपनाया और उन्होंने पाया कि इसके छिड़काव से पराली कुछ दिनों में अपने आप खाद में तब्दील हो जाती है। यही वजह है कि दिल्ली में पराली जलाने की घटनाएं सामने नहीं आई हैं। इससे किसान भी खुश हैं।


दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित की गई डीकंपोजर कैप्सूल का इस्तेमाल कर फसलों के अवशेष (पराली) को खाद में बदला जा सकता है। पूसा इंस्टीट्यूट की ओर से तैयार 4 डीकंपोजर कैप्सूल की कीमत सिर्फ 20 रुपये है। पूसा के वैज्ञानियों की मानें तो डीकंपोजर कैप्सूल को गुड़ और बेसन के साथ घोल बना कर खेतों में इस्तेमाल किया जाता है। 4 कैप्सूल से कुल 25 लीटर घोल तैयार किया जा सकता है जो एक हेक्टेयर जमीन के लिए पर्याप्त है। इसका खेतों में छिड़काव करने से यह कुछ दिनों में ही पराली को खाद में तब्दील कर देता है। दिल्ली सरकार ने राजधानी में गैर-बासमती किस्म वाले चावल के खेतों में अक्टूबर महीने से ही पूसा बायो-डीकम्पोजर घोल का छिड़काव शुरू कर दिया है। बता दें कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) को पूसा इंस्टीट्यूट के नाम से भी जाना जाता है।


दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण में पराली भी है एक कारक

बता दें कि दिल्ली-एनसीआर के वायु प्रदूषण के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। गाड़ियां से निकलने वाला धुंआ, निर्माण कार्य के चलते धूल के साथ पराली जलाने के बाद बना धुंआ भी दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ाता है। सर्दियों के दौरान दिल्ली के कुल प्रदूषण में पराली के धुएं का योगदान कभी-कभार 30 फीसद तक पहुंच जाता है।

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