नेतन्‍याहू की गोपनीय सऊदी अरब की यात्रा के आखिर क्‍या हैं राजनीतिक मायने, जानें- एक्‍सपर्ट की जुबानी

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इजरायल और अरब जगत के बीच बीते कुछ समय से जो बदलाव आया है उसमें एक नया अध्‍याय जुड़ने की संभावना दिखाई देने लगी है। ये संभावना इजरायल-सऊदी अरब संबंधों से जुड़ी है। दरअसल, जब से इजरायली मीडिया में ये खबर आई है कि प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्‍याहू ने सऊदी अरब के शहर निओम में गुपचुप तरीके से पहुंचकर वहां अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्‍मद बिन सुल्‍तान से मुलाकात की है, इसकी अटकलें तेज हो गई हैं। ऐसा इसलिए भी है, क्‍योंकि अरब जगत में सऊदी अरब एक अहम देश की भूमिका निभाता है।

OIC में सऊदी अरब की अहम भूमिका

इस्‍लामिक देशों के संगठन इस्‍लामिक सहयोग संगठन में भी उसकी भूमिका काफी अहम है। वहीं, इस क्षेत्र के देशों से इजरायल ने जिस तर्ज पर अपने संबंधों को नए आयाम दिए हैं उसमें सऊदी अरब का नाम यदि जुड़ जाता है तो ये इजरायल के लिए भी काफी खास होगा। आपको बता दें कि इजरायल के साथ अरब देशों से हुए समझौतों में अमेरिका की बड़ी भूमिका रही है। अमेरिका के सऊदी अरब और खासतौर पर वहां के क्राउन प्रिंस से काफी अच्‍छे संबंध हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया है कि नेतन्‍याहू की इस यात्रा में इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के चीफ योस्‍सी कोहेन भी मौजूद थे।


अरब देशों से ऐतिहासिक समझौते

आपको बता दें कि इजरायल ने जिन देशों के साथ अमेरिका की मध्‍यस्‍थता में ऐतिहासिक समझौते किए हैं उनमें संयुक्‍त अरब अमीरात, सूडान और बहरीन शामिल है। यहां पर ये भी जानना जरूरी है कि इससे पहले अरब देशों में शामिल मिस्र और जोर्डन से ही इजरायल के राजनीतिक संबंध थे। इनके अलावा किसी अन्‍य देश के साथ इजरायल के संबंध नहीं रहे हैं। जो देश इजरायल को अपने से दूर करते हैं उनकी सबसे बड़ी वजह इजरायल-फिलीस्‍तीन विवाद है। सऊदी अरब भी इन्‍हीं में से एक है। सऊदी अरब के सुल्‍तान का कहना है कि जब तक फिलीस्‍तीन विवाद सुलझ नहीं जाता है तब तक वो इजरायल के प्रति अपनी नीति और विचार नहीं बदलने वाले है। इस पूरे क्षेत्र में इजरायल के लिए उनका कट्टर विरोधी ईरान है। दूसरी तरफ ईरान और सऊदी अरब में छत्‍तीस का आंकड़ा है। दोनों ही एक-दूसरे के घोर विरोधी हैं।


क्‍या सऊदी अरब से भी समझौता मुमकिन?

हालांकि जवाहर लाल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एके पाशा का मानना है कि फिलहाल दोनों देशों के बीच समझौते की उम्‍मीद काफी कम है। इसकी वजह सऊदी अरब के सुल्‍तान का वो बयान है, जिसमें उन्‍होंने कहा था कि उनके जीते जी इजरायल से किसी भी तरह के संबंध नहीं हो सकते हैं। पाशा का ये भी कहना है कि नेतन्‍याहू और सऊदी के क्राउन प्रिंस के बीच इस तरह की ये पहली गोपनीय मुलाकात नहीं है, बल्कि इससे पहले भी वो दो बार इसी तरह से मुलाकात कर चुके है। पाश इस गोपनीय मुलाकात की वजह के पीछे ईरान की चिंता को सबसे अधिक मान रहे हैं। उनका कहना है कि अमेरिका में सरकार बदलने वाली है। इस वजह से दोनों ही देश एक दूसरे को इस बात का भरोसा दिलाने में लगे हैं कि वो गुपचुप तरीके से उनके साथ हैं।


इन चारों के बीच गोपनीय बैठक

निओम में हुई जिस गोपनीय बैठक का जिक्र समाचार एजेंसी एपी ने इजरायली मीडिया के हवाले से किया है उसमें नेतन्‍याहू, पोंपियो, कोहेन और क्राउन प्रिंस सलमान मौजूद थे। माना जा रहा है कि इस बैठक में दोनों देशों के बीच समझौते को लेकर कोई रोडमैप तलाशा गया है। यहां पर ये भी बताना जरूरी है कि सऊदी अरब को साधकर इजरायल इस्‍लामिक सहयोग संगठन से जुड़े दूसरे देशों को भी साधना चाहता है। प्रोफेसर पाशा का तो यहां तक मानना है कि भविष्‍य में इजरायल और ईरान के बीच भी कोई समझौता अमल में आ सकता है। एपी की एक खबर में कहा गया है कि इजरायली प्रधानमंत्री ने जल्‍द ही बहरीन के सुल्‍तान से मिलने की भी संभावना जताई है। खबर के मुताबिक, उन्‍होंने बहरीन के क्राउन प्रिंस से फोन पर बात की है, जिसके बाद इसकी जानकारी दी गई। हाल ही में बहरीन के विदेश मंत्री ने इजरायल की यात्रा की थी।

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