नहीं रुक रहा कांग्रेस का पतन, तेजी से घट रहा जनाधार

49


दिल्ली नगर निगम के पांच वार्ड के उपचुनाव में सिर्फ एक सीट पर जीत दर्ज कर भले ही दिल्ली कांग्रेस खुशी जाहिर कर रही हो, लेकिन सच्चाई तो यही है कि कांग्रेस का जनाधार लगातार सिमट रहा है। चुनाव दर चुनाव तेजी से कांग्रेस को मिलने वाले कुल मत फीसद में कमी आ रही है। आलम यह है कि चौहान बांगर वार्ड की जिस जीत को पार्टी अपना बता रही है, वह भी उसकी नहीं, बल्कि वहां के पूर्व विधायक मतीन अहमद की मेहनत तथा स्थानीय समीकरणों की उपज है।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो मुस्लिम बहुल इस वार्ड के मतदाता उसी पार्टी के साथ खड़े हुए दिखाई देते हैं, जो भाजपा को हराने की क्षमता रखती हो। वोट भी इसी के अनुसार करते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में यह क्षमता उन्हें कांग्रेस में दिखी तो एकतरफा कांग्रेस के साथ चले गए, जबकि विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ खड़े नजर आए। इस बार फिर मतदाता कांग्रेस के साथ आ गए। पीछे मुड़कर देखें तो 2016 में 13 वार्डों के उपचुनाव में कांग्रेस को 28.47 फीसद वोट मिले थे, जबकि इस उपचुनाव में कांग्रेस को करीब 22 फीसद वोट मिले हैं। यानी करीब छह फीसद कम वोट मिले हैं। ऐसे में तुलनात्मक रूप से देखें तो कांग्रेस का नुकसान ही हुआ है। यही नहीं, 2017 के निगम चुनाव से इन पांचों वार्डों की ही तुलना करें, तो शालीमार बाग में कांग्रेस को 911 वोट कम मिले, रोहिणी सी में 397 वोट कम मिले, त्रिलोकपुरी में 1,482 वोट और कल्याणपुरी में 2,682 वोट कम मिले। सिर्फ चौहान बांगर में ही 9,715 वोट ज्यादा मिले हैं। इससे यह कहा जा सकता है कि अभी भी दिल्ली की जमीन पर कांग्रेस बिखरी हुई है।


कांग्रेस का यह दावा भी गलत है कि उसने अल्पसंख्यकों का दिल जीत लिया है। एक साल पहले ही हुए विधानसभा चुनाव में दिल्ली के ज्यादातर मुस्लिम मतदाता कांग्रेस को नकार कर आम आदमी पार्टी के साथ खड़े हो गए थे। विडंबना यह कि केवल अल्पसंख्यकों के साथ खड़े दिखने की चाहत में कांग्रेस ने बहुसंख्यक मतदाताओं को भी दूर कर लिया है।

Get real time updates directly on you device, subscribe now.