धरती पर होने वाले कंपन के पीछे छिपा है विज्ञान का एक रहस्‍य, जानें- क्‍या है इनकी सच्‍चाई

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दो दिन पहले रात साढ़े दस बजे करीब पूरा उत्‍तर भारत भूंकप के तेज झटके से थर्रा गया। हालांकि इस भूकंप से जान-माल की हानि तो नहीं हुई लेकिन लोगों में कुछ सैकेंड के लिए आए इस भूकंप ने दहशत जरूर पैदा कर दी थी। इसका केंद्र भारत से दूर तजाकिस्‍तान में धरती से करीब 70 किमी नीचे मौजूद था। रिक्‍टर स्‍केल पर इसकी तीव्रता 6.1थी।

भारत में आए भूकंप के एक ही दिन बाद जापान, जो कि भूंकप के लिए बेहद संवेदनशील जगह है, में शनिवार को 7.1 तीव्रता का भूकंप आया। इसका केंद्र समुद्र तल से करीब 60 किमी गहराई में था। इसके झटके टोक्‍यो से लेकर दक्षिण पश्चिम तक महसूस किए गए। इसकी वजह से कुछ महान धराशायी हो गए और कुछ लोगों को चोट भी आई है। साथ ही इसकी वजह से आठ लाख घरों की बिजली गुल हो गई। इसके साथ ही शनिवार को ही आर्मीनिया में भी 4.7 तीव्रता का भूकंप महसूस किया गया। इसका केंद्र राजधानी येरेवान से दक्षिण में 13 किमी की दूरी पर था।


आपको बता दें कि हर रोज ही दुनिया में कहीं न कहीं भूकंप के झटके रिकॉर्ड किए जाते हैं। यूएसजीएस के मुताबिक अकेले अमेरिका में ही बीते 24 घंटों के दौरान करीब 20 बार भूकंप को रिकॉर्ड किया गया। वहीं जापान में बीते 24 घंटों में चार बार भूकंप रिकॉर्ड किया गया जो रिक्‍टर स्‍केल पर 4.5-7.1 की तीव्रता के थे। आपको बता दें कि मार्च 2011 में जापान में रिक्‍टर स्‍केल पर 8 की तीव्रता का भूकंप आया था, जिसके बाद वहां पर परमाणु संयंत्र को जबरदस्‍त नुकसान पहुंचा था। इसकी वजह से आई सुनामी में हजारों लोगों की जान गई थी और अरबों डॉलर की संपत्ति को नुकसान पहुंचा था।


भारत की ही बात करें तो सरकार के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2020 में करीब 965 बार देश में भूकंप के झटके महसूस किए गए। इस वर्ष में अब तक दो बार ऐसा हो चुका है। वर्ष 2020 में देश की राजधानी में ही करीब 13 बार भूकंप के झटके महसूस किए गए। यहां पर जिन भूकंपों का जिक्र किया जा रहा है, रिक्‍टर स्‍केल पर उनकी तीव्रता 3 या उससे अधिक की रही थी।

इससे कम की तीव्रता के भी भूकंप रिकॉर्ड किए गए, लेकिन चूंकि इनका कोई असर नहीं होता है और न ही इनको महसूस किया जा सकता है, इसलिए यहां पर इनका जिक्र नहीं किया गया है। इनको केवल धरती का कंपन जांचने वाली मशीन से रिकॉर्ड किया जा सकता है। हालांकि ये भी सच्‍चाई है कि विज्ञान के इतनी तरक्‍की कर लेने के बाद भी ऐसी कोई मशीन नहीं बन पाई है जिससे भूकंप का आने से पहले इसका पता किया जा सके।


भारत की ही बात करें तो देश को भूकंप के लिहाज से चार भागों में बांटा गया है। इसमें सबसे अधिक खतरनाक श्रेणी जोन-5 में देश का पूर्वोत्‍तर इलाका, हिमालय का क्षेत्र समेत हिमाचल प्रदेश, गुजरात, जम्‍मू कश्‍मीर, अंडमान निकोबार द्वीप समूह आता है। इसके अलावा जोन-4 में देश की राजधानी दिल्‍ली समेत, पश्चिम बंगान, बिहार, गुजरात का कुछ इलाका, उत्‍तर प्रदेश, महाराष्‍ट्र और राजस्‍थान का कुछ इलाका आता है।


जोन-3 में केरल, गोवा, मध्‍य प्रदेश, झारखंड, छत्‍तीसगढ़, ओडिशा, तमिलनाडु और कर्नाटक का इलाका आता है। आपको बता दें कि भूकंप के लिहाज से जोन-5 को सबसे खतरनाक माना जाता है। जोन-4 में भूकंप की अधिकतम तीव्रता 7.9 तक हो सकती है। वहीं भूकंप के लिहाज से सबसे कम खतरनाक श्रेणी को जोन-2 में रखा जाता है जहां पर रिक्‍टर स्‍केल पर अधिकतम 5 की श्रेणी का भूकंप आ सकता है।

भूकंप का पता भले ही पहले नहीं चल सकता है लेकिन ये जानना भी जरूरी है कि आखिर ये क्‍यों आता है। दरअसल, पूरी धरती पर ऐसी 12 टैक्टोनिक प्लेट हैं जिनकी वजह से भूकंप आता है। इन प्‍लेट्स के नीचे लावा बहता है। जब ये प्‍लेट्स हिलती हैं और एक दूसरे से टकराती हैं तो धरती की सतह पर कंपन होता है, जिसको हम भूकंप कहते हैं। इनका खिसकना और टकराना एक प्राकृतिक घटना है। आमतौर पर हर वर्ष ये प्‍लेट्स 4-5 मिमी तक खिसक जाती हैं। इनके टकराव के पीछे इनसे निकलने वाली एनर्जी होती है।


धरती की सतह के करीब 30-50 किमी की गहराई में मौजूद ये टेक्‍टोनिक प्‍लेट्स के होने वाला कंपन सतह पर कितना नुकसान पहुंचाएगा ये इस बात पर निर्भर होता है कि आखिर इसके केंद्र की गहराई धरती के कितने अंदर है। इसकी गहराई जितनी कम होगी धरती की सतह पर होने वाला कंपन उतना ही अधिक होगा और नुकसान की संभावना भी उतनी ही अधिक होगी। गौरतलब हे कि भारत के नीचे मौजूद इंडियन प्‍लेट्स हिमालय से लेकर अंटार्कटिक तक फैली है, जबकि हिमालय के उत्तर में यूरेशियन प्लेट स्थित है।

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