दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल में बढ़ेगी रार, AAP के कई नेता नाराज; भाजपा खुश

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केंद्र सरकार का राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली संशोधन विधेयक 2021 दिल्ली के उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच रार का नया आधार बन सकता है। अधिकारों की खींचतान में एक बार फिर दिल्ली के विकास पर इसका असर पड़ सकता है। उपराज्यपाल की शक्तियां बढ़ाने के प्रस्ताव को अभी हालांकि केंद्र सरकार की कैबिनेट ने ही मंजूरी दी है और इसे संसद में पेश किया जाना शेष है, लेकिन दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की तीखी प्रतिक्रिया राजधानी दिल्ली के सुखद भविष्य के संकेत नहीं दे रही है। वहीं, दिल्ली भारतीय जनता पार्टी ने इस पर अपनी खुशी जताई है।

केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते होती है दिक्कत

जानकारों के मुताबिक, इसमें कोई संदेह नहीं कि दिल्ली देश की राजधानी ही नहीं, केंद्र शासित प्रदेश भी है। विशेष प्रविधान के तहत 30 वर्ष पहले यहां दिल्ली सरकार का गठन भी कर दिया गया, लेकिन अब भी संवैधानिक तौर पर यहां के मुख्य प्रशासक का दर्जा उपराज्यपाल को ही प्राप्त है। दूसरी ओर, इसमें भी संदेह नहीं कि दिल्ली सरकार दिल्लीवासियों की चुनी हुई सरकार है। उसे जनता के हित में निर्णय लेने और योजनाएं बनाने का पूर्ण अधिकार है। आम आदमी पार्टी सरकार की कार्यप्रणाली पर मुहर लगाते हुए जनता ने अरविंद केजरीवाल को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाया है। ऐसे में उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों का सामंजस्य होना बहुत आवश्यक है। देश की राजधानी का विकास समुचित ढंग से हो, इसलिए भी यह अनिवार्य है।


दिल्ली सरकार लेनी होगी उपराज्यपाल से अनुमति


प्रस्तावित विधेयक में केंद्र सरकार की कैबिनेट ने जिन संशोधनों पर मुहर लगाई है, उनमें दिल्ली सरकार के लिए कमोबेश सभी विधायी और प्रशासनिक निर्णयों में उपराज्यपाल से सहमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है। कोई भी विधायी प्रस्ताव दिल्ली सरकार को 15 दिन पहले और कोई भी प्रशासनिक प्रस्ताव सात दिन पहले उपराज्यपाल को भिजवाना होगा। अगर उपराज्यपाल उस प्रस्ताव से सहमत नहीं हुए तो वे उसे अंतिम निर्णय के लिए राष्ट्रपति को भी भेज सकेंगे। अगर कोई ऐसा मामला होगा, जिसमें त्वरित निर्णय लिया जाना होगा तो उपराज्यपाल अपने विवेक से निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होंगे।

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