केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में एक ओर किसान जगह-जगह आंदोलनरत हैं, दूसरी ओर कुछ किसान ऐसे भी हैं जो इन कानूनों का खुलकर समर्थन कर रहे हैं। ऐसे ही एक किसान हैं सुनील राणा। मुखमेलपुर गांव के राणाा कहते हैं कि इन कानूनों से फायदा ही फायदा है, बस किसानों को इन्हें समझने की जरूरत है। लोगों को अभी कृषि कानूनों को पूरी तरह से समझने में वक्त लगेगा। उनके अनुसार, सरकार की मंशा ठीक है। किसानों की दशा सुधारने में ये कानून सार्थक होंगे। सुनील राणा ने बताया कि वह पिछले दो साल से कांट्रैक्ट (अनुबंध) खेती कर रहे हैं। गांव के कुछ अन्य किसान भी इसी ढर्रे पर खेती कर रहे हैं।
इसके अलावा उनके गांव के बगल ही पल्ला गांव में भी कई किसान कांट्रैक्ट खेती कर रहे हैं। इसका फायदा भी दिख रहा है। वह अपना माल मंडी के बाहर भी बेच रहे हैं और भाव भी अच्छा मिल रहा है। सुनील का कहना है कि नए कृषि कानूनों से किसानों को दूसरे राज्यों में जाकर अपना माल बेचने की सुविधा मिलेगी। फसल बीमा की प्रक्रिया के बारे में किसानों में जागरूकता बढ़ेगी। किसानों के समूह बनने के फायदे होंगे जिसमें कुछ खेती करेंगे और कुछ कानूनी मोर्चा संभालेंगे। करीब पांच एकड़ जमीन के मालिक सुनील गेहूं, धान के अलावा कई प्रकार की सब्जियों की खेती करते हैं।
वह कहते हैं कि कांट्रैक्ट के जरिये कंपनी की देखरेख में खेती करने से रासायनिक खादों को कम डालना पड़ रहा है। वह जैविक खादों का इस्तेमाल कर रहे हैं।उन्होंने बताया कि सरकार ने नजदीक के एसडीएम कोर्ट में किसानों के मसलों को सुलझाने की व्यवस्था की है। खास बात यह भी होगी कि इसमें सरकारी कर्मियों के अलावा किसानों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। ऐसे में नए कानूनों को लेकर किसानों को भ्रमित और आशंकित होने की जरूरत नहीं है।
उनके अनुसार, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का लाभ किसानों को कई वर्षों से नहीं मिल रहा है। नए कानूनों से किसानों को कोई नुकसान नहीं होगा। यह मांग और आपूर्ति पर निर्भर करेगा। इसके लिए ऐसी फसलें बोनी पड़ेंगी, जिनकी मांग अधिक है। वह इस बात को लेकर भी आश्वस्त हैं कि भविष्य में यदि कानूनों को लेकर समस्या उत्पन्न होती है, तो इसमें सुधार भी किया जा सकता है। हालांकि, वह कहते हैं कि भंडारण को असीमित करने से इसका गलत इस्तेमाल होने की आशंका है। इसलिए मुनाफे पर अंकुश और निगरानी भी जरूरी है।