लोग इस हद तक सहनशीलता खोते जा रहे हैं कि रोडरेज में मामूली सी बात पर भी एक दूसरे की जान लेने पर तुले हुए हैं। लोग बेलगाम होकर रोडरेज की वारदात को अंजाम दे रहे हैं। उनमें न तो पुलिस का खौफ है न ही अपनी और दूसरे की जान की परवाह। यमुनापार में सवा दो महीने में 20 से अधिक रोडरेज के मामले सामने आ चुके हैं। कहीं पूरे परिवार को पीटा गया, तो कहीं कुल्हाड़ी से वार किया गया।
हद तब हो गई जब दो फरवरी को गीता कालोनी में कार चालक ने पहले स्कूटी सवार को टक्कर मारी, उसने विरोध किया तो उसकी मदद के लिए आगे आए मोटरसाइकिल सवार को कार चालक ने रौंदकर मौत के घाट उतार दिया था। पुलिस रोडरेज में आरोपितों को गिरफ्तार भी कर रही है, लेकिन वारदात पर लगाम नहीं लग पा रही है।
लोगों के दिमाग में एक बात घर कर गई है कि रोडरेज की वारदात मानसिक रोगी करते हैं, लेकिन सच्चाई यह नहीं है। कई शोध हो चुके हैं, जिनसे यह बात साबित हुई है कि रोडरेज की वारदात मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति करते हैं। रोडरेज की बढ़ती वारदात के पीछे समाज और शहरी जीवन में बढ़ रहा तनाव है।
डॉक्टर की बातें
लोग निराशा को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं, उदाहरण के तौर पर वाहन को टक्कर मारने के बाद कोतवाल ने अगर चोर को डांट दिया तो चोर को यह बात हजम नहीं होती उसने डांट कैसे दिया। रोडरेज की वारदात पर नकेल कसने के लिए पुलिस और कोर्ट को सख्त कार्रवाई करनी होगी। समाज में जागरूकता अभियान भी चलाना होगा।
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