दिल्ली की जेलों में कैदी कर रहे मोबाइल का इस्तेमाल, पढ़िए कैसे जेल में पहुंचता है मोबाइल

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जेलों में बंद कैदी सलाखों के पीछे से भी वारदात को अंजाम देने से बाज नहीं आ रहे हैं। कैदी बाहर मौजूद अपने गुर्गो से जब चाहते हैं तब मोबाइल फोन से संपर्क करते हैं। बाहर मौजूद गुर्गे इनके एक इशारे पर वारदात कर दिल्ली पुलिस के लिए मुसीबत खड़ी कर रहे हैं। जेल प्रशासन कैदियों की करतूत रोक पाने में विफल साबित हो रहा है।

कैसे जेल में पहुंचता है मोबाइल

बाहर से टेनिस बाल को उछालकर उसमें मोबाइल व सिम कार्ड भरकर चारदीवारी के भीतर फेंक दिया जाता है। जेल के अंदर जिस सिम का इस्तेमाल किया जाता है उसका इंतजाम कैदी बाहर मौजूद अपने झपटमार साथियों से करवाते हैं।

झपटमारी से हासिल मोबाइल से सिम कार्ड निकालकर इस नंबर का इस्तेमाल वाट्सएप इंस्टाल करने के लिए किया जाता है, ताकि सिम मालिक का पता भी चले तो कैदी का नाम सामने न आए। तकनीकी लाचारी का खूब फायदा उठाते हैं कैदी सबसे पहले जेल में 2जी नेटवर्क की क्षमता वाले जैमर लगाए गए थे।


बरामदगी का सिलसिला जारी

सुरक्षा से जुड़े तमाम उपायों के बावजूद जेल में मोबाइल की बरामदगी का सिलसिला नहीं थमता देख अब जेल प्रशासन को उस दिन का इंतजार है जब मोबाइल हाथ में होने के बावजूद कैदी केवल जैमर लगे होने के कारण मोबाइल का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे।

हाल ही में मंडोली जेल में बंद एक बदमाश ने एक कारोबारी को वीडियो काल किया और उससे रंगदारी मांगी। हालांकि इस मामले को उत्तरी पूर्वी जिला पुलिस ने सुलझा लिया है, लेकिन इस घटना ने जेल प्रशासन के सुरक्षा संबंधी दावे के खोखलेपन को बयां कर दिया।

हर साल मिलता है 500 मोबाइल

अमूमन हर वर्ष दिल्ली की सभी जेलों से करीब 500 मोबाइल बरामद होते हैं। जेल में प्रवेश से पहले तलाशी कई जगहों पर की जाती है। अंतिम चरण में जेल में तैनात तमिलनाडु पुलिस के जवान तलाशी लेते हैं। इस दौरान जूते भी उतार लिए जाते हैं, लेकिन तलाशी की यह सख्त प्रक्रिया केवल कैदियों के लिए ही है। जेलकर्मियों के लिए यहां तलाशी की प्रक्रिया नाममात्र के लिए ही होती है।


मंडोली जेल के हेड वॉर्डर हुआ था गिरफ्तार

अधिकारियों की तो यहां तलाशी कभी ली ही नहीं जाती। पिछले वर्ष मंडोली जेल के एक हेड वार्डर को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। वह एक सिम कार्ड उपलब्ध कराने के एवज में कैदियों से दो हजार रुपये लेता था। तिहाड़ परिसर में एक चिकित्सक को तब पकड़ा गया था जब वह सिम कार्ड लेकर अंदर जा रहा था। कई मामलों में जेल के सहायक अधीक्षक रैंक के अधिकारी पर भी कैदी सिम कार्ड पहुंचाने का आरोप लगा चुके हैं। ऐसे जेल जहां जेलकर्मी से कैदियों की नहीं बनती वहां कैदी दूसरी तरकीब का इस्तेमाल करते हैं।


लगे हैं 30 जैमर

करीब 30 जैमर तिहाड़ में लगे थे, लेकिन जेल अधिकारियों ने ये जैमर जेल के भीतरी हिस्से में लगाने के बजाय जेल परिसर के मुख्य दरवाजे के नजदीक लगा दिए थे। नतीजा यह हुआ कि चारदीवारी के भीतर कैदी मोबाइल का इस्तेमाल बड़ी आसानी से कर लेते थे।

इनकी रेंज में सिर्फ 30 मीटर का दायरा आता है। वह भी तब, जब आसपास के इलाके में कोई व्यवधान मसलन बिजली का तार, कंक्रीट निर्मित ढांचे जैसी संरचना न हो, अन्यथा ये पांच से दस मीटर तक की रेंज में ही कामयाब होते थे। अब 4जी नेटवर्क के जमाने में तो तिहाड़ के जैमर सफेद हाथी बनकर रह गए हैं।

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