जानें- क्‍या था एक्‍सप्‍लोरर-1, रूस और अमेरिका के बीच शीत युद्ध की बना था बड़ी वजह

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मौजूदा समय में अंतरिक्ष में एक अहम मुकाम बना चुके अमेरिका ने इसकी शुरुआत 31 जनवरी 1958 को की थी। इसी दिन अमेरिका ने अपना पहला उपग्रह अंतरिक्ष की तरफ लॉन्‍च किया था। इसका नाम था एक्‍सप्‍लोरर-1। इसकी लॉन्चिंग इंटरनेशनल जियोफिजीकल ईयर में अपनी भागीदारी के प्रतीक स्‍वरूप की थी। लेकिन यही लॉन्चिंग बाद में अमेरिका और रूस के बीच लंबे समय तक चले शीत युद्ध की वजह भी बनी थी।

दरअसल, अंतरिक्ष में छलांग लगाने में सबसे पहले रूस ने ही बाजी मारी थी। रूस की इस ऊंची उड़ान की बराबरी करने या उसको पछाड़ने के मकसद से ही अमेरिका ने अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू किया और एक्‍सप्‍लोरर-1 को लॉन्‍च किया था। इसको फ्लोरिडा के केप कैनेवेरल से लॉन्‍च किया गया था। अमेरिका की प्रपल्‍शन लैब (जेपीएल) में इसको तैयार किया गया था। इसने ही सबसे पहले वेनएलन रेडिएशन बेल्‍ट के बारे में पता लगाया था। इस बेल्‍ट में सोलर विंड से पैदा हुए ऐसे छोटे पार्टिकल्‍स होते हैं जो जबरदस्‍त एनर्जी पैदा करते हैं।


पृथ्‍वी के करीब ऐसी दो बेल्‍ट का पता लगाया गया है। इसके खोजकर्ता जेम्‍स वेनएलन के नाम पर ही इसका नामकरण किया गया था। ये बेल्‍ट धरती से करीब 640 किमी से 58000 किमी की ऊंचाई पर है। यहां का रेडिएशन लेवल कम और ज्‍यादा होता रहता है। यहां पर एनर्जी पैदा करने वाले पार्टिकल्‍स सोलकर विंड के अलावा कॉस्मिक रे से भी आते हैं। अमेरिका के इस पहले उपग्रह ने इससे जुड़े कई आंकड़े अमेरिकी वैज्ञानिकों को उपलब्‍ध करवाए थे। ये अपनी कक्षा में करीब 12 वर्षों तक लगातार काम करता रहा। एक्‍सप्‍लोरर-1 को सेटेलाइट कैटालॉग नंबर 4 दिया गया था।


जहां तक इसकी वजह से अमेरिका और रूस में शीतयुद्ध छिड़ने की बात है तो आपको बता दें कि रूस एक्‍सप्‍लोरर-1 से पहले ही अपना स्पूतनिक 1 और 2 को अंतरिक्ष में छोड़ अपनी बढ़त बना चुका था। इसके बाद दोनों के ही बीच इस बात को लेकर होड़ मच ई थी कि कौन कितनी जल्‍दी अंतरिक्ष पर कब्‍जा कर सकता है। यही वजह शीत युद्ध का बड़ा कारण बनी थी।

अमेरिकी अर्थ सेटेलाइट कार्यक्रम की शुरुआत 1954 में हुई थी। इसको प्रोजेक्‍ट ऑर्बिटर का नाम दिया गया था। इसके लिए पहले रेडस्‍टोन मिसाइल का इस्‍तेमाल करने की सलाह दी गई थी। लेकिन राष्‍ट्रपति आइजनहॉवर को ये प्रपोजल पसंद नहीं आया। इसलिए उन्‍होंने नेवी के प्रोजेक्‍ट वेनगार्ड को अपनाया। इसमें बूस्‍टर की मदद से इसको लॉन्‍च करने के बारे में कहा गया था। इसके लिए जुपिटर-सी रॉकेट में कुछ जरूरी बदलाव किए गए थे। बाद में इसको जूना का नाम दिया गया था। लेकिन ये सब कुछ करने में अमेरिका को काफी समय लग गया और इस बीच 4 अक्‍टूबर 1957 को रूस ने अपना उपग्रह स्‍पूतनिक-1 और 3 नवंबर 1957 को स्‍पूतनिक-2 लॉन्‍च कर दिया था।


रूस से अमेरिका की खीझ की बड़ी वजह उसकी लॉन्चिंग में हुई देरी ही नहीं बनी थी, बल्कि वो अपने पहले प्रयास में विफल रहा था। 6 दिसंबर 1957 को उसकी ये कमी दुनिया के सामने उजागर हुई थी। अमेरिका का ये उपग्रह 13 किग्रा से कुछ अधिक वजनी था। वहीं रूसी उपग्रह इसकी तुलना में कहीं अधिक भारी था। 1959 में जूनो-1 को जूनो-2 से बदल दिया गया था।

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