कृषि कानूनों को लेकर किसानों की ये हैं आपत्तियां, विधेयकों के फायदे भी जरूर जानें
अगर ऐसा कहा जाए कि देश की राजधानी दिल्ली चारों ओर से घिरी हुई है तो यह गलत नहीं होगा। तीन कृषि कानूनों को मंजूरी के बाद से ही किसानों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया था। यहां तक की सरकार में केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने बिल के विरोध में कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। कई महीनों तक पंजाब में किसान सड़कों पर बिल के विरोध में प्रदर्शन करते रहे। पंजाब में रेलवे पूरी तरह से फेल गया। हर रोज बिलों को वापस लेने की मांग तेज होती रही, जहां आखिरकार पंजाब समेत कई राज्यों के किसानों के बीच राजधानी दिल्ली फंसी हुई है।
किसानों को दिल्ली आने से रोकने के लिए कई प्रयास हुए, लेकिन दवाब इतना कि सरकार बातचीत के जरीए किसानों को समझाना चाहती है और कई दौर की बैठक हो भी चुकी, मगर कोई सफलता हासिल नहीं हुई। यहां दिलचस्प बात यह भी कि जहां एक तरफ पंजाब, हरियाणा, यूपी समेत कुछ और राज्य से किसान सरकार से तीन कानूनों को रद करने की बात कह रहे हैं। वहीं, कुछ ऐसे में भी किसान हैं जो इन बिल के फायदे गिना रहे हैं। पहले विरोध कर रहे किसानों की जान लेते हैं…
तीनों बिलों के मुख्य प्रावधान और किसानों को कैसे है नुकसान?
- कृषि उत्पाद व्यापार व वाणिज्य कानून-2020: राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद इस कानून के तहत अब किसान देश के किसी भी हिस्से में अपना उत्पाद बेचने के लिए स्वतंत्र हैं। इससे पहले की फसल खरीद प्रणाली उनके प्रतिकूल थी।
किसानों के मुताबिक और इस बिल से जुड़ी बड़ी बातें
-इच्छा के अनुरूप उत्पाद को बेचने के लिए आजाद नहीं है।
-भंडारण की व्यवस्था नहीं है, इसलिए वे कीमत अच्छी होने का इंतजार नहीं कर सकते।
-खरीद में देरी पर एमएसपी से काफी कम कीमत पर फसलों को बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
-कमीशन एजेंट किसानों को खेती व निजी जरूरतों के लिए रुपये उधार देते हैं। औसतन हर एजेंट के साथ 50-100 किसान जुड़े होते हैं।
-अक्सर एजेंट बहुत कम कीमत पर फसल खरीदकर उसका भंडारण कर लेते हैं और अगले सीजन में उसकी एमएसपी पर बिक्री करते हैं।
-नए कानून से किसानों को ऐसे होगा लाभ अपने लिए बाजार का चुनाव कर सकते हैं।
-अपने या दूसरे राज्य में स्थित कोल्ड स्टोर, भंडारण गृह या प्रसंस्करण इकाइयों को कृषि उत्पाद बेच सकते हैं।
-फसलों की सीधी बिक्री से एजेंट को कमीशन नहीं देना होगा।
-न तो परिवहन शुल्क देना होगा न ही सेस या लेवी देनी होगी।
-इसके बाद मंडियों को ज्यादा प्रतिस्पर्धी होना होगा।
- मूल्य आश्वासन व कृषि सेवा कानून-2020: इसके कानून बनने के बाद किसान अनुबंध के आधार पर खेती के लिए आजाद हो गए हैं। हालांकि, इन कारणों से हो रहा विरोध
-किसानों का कहना है कि फसल की कीमत तय करने व विवाद की स्थिति का बड़ी कंपनियां लाभ उठाने का प्रयास करेंगी।
-बड़ी कंपनियां छोटे किसानों के साथ समझौता नहीं करेंगी।
3.आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून-2020: इस बिल के तहत अनाज, दलहन, तिलहन, खाने वाले तेल, प्याज व आलू को आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर करने का प्रावधान है। इसके बाद युद्ध व प्राकृतिक आपदा जैसी आपात स्थितियों को छोड़कर भंडारण की कोई सीमा नहीं रह जाएगी।
क्यों हो रहा विरोध
-असामान्य स्थितियों के लिए कीमतें इतनी अधिक हैं कि उत्पादों को हासिल करना आम आदमी के बूते में नहीं होगा।
-आवश्यक खाद्य वस्तुओं के भंडारण की छूट से कॉरपोरेट फसलों की कीमत को कम कर सकते हैं।
-मौजूदा अनुबंध कृषि का स्वरूप अलिखित है। फिलहाल निर्यात होने लायक आलू, गन्ना, कपास, चाय, कॉफी व फूलों के उत्पादन के लिए ही अनुबंध किया जाता है।
-कुछ राज्यों ने मौजूदा कृषि कानून के तहत अनुबंध कृषि के लिए नियम बनाए हैं।
अब कानूनों के फायदे बताने वाले किसानों की जानें
वाजपेयी से की मांग, मोदी ने की पूरी
यहां बात हरियाणा के प्रगतिशील किसान माने जाने वाले कंवल सिंह चौहान की। वह कहते हैं कि 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। वाजपेयी ने देश भर के किसानों से उनकी समस्या पूछी थी। तब किसानों ने वाजपेयी के सामने सुझाव रखा कि कांट्रेक्ट फार्मिंग के साथ-साथ प्रोसेसिंग यूनिट को डायरेक्ट (सीधे) खरीद करने की सुविधा मिले तो किसानों को काफी फायदा होगा। तो वाजपेयी ने पूछा, ऐसा क्यों? तब जवाब मिला कि किसान कांट्रेक्ट फार्मिंग से बासमती चावल या कोई दूसरी फसल तो पैदा कर लेगा, लेकिन यदि कोई प्रोसेसिंग यूनिट उसे नहीं खरीद सकेगी तो खेती का कोई लाभ नहीं होगा। अब जहां पीएम मोदी ने जरूरत को पूरा किया।
एमएसपी पर साफ किया संशय
चौहान बताते हैं कि एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की गारंटी तब भी नहीं थी। आज भी नहीं है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर सरकार ने चावल का रेट 40 रुपये किलो निर्धारित कर दिया। और इंटरनेशनल मार्केट में स्पर्धा होती है। ईरान और इराक को यदि पाकिस्तान सस्ते रेट पर चावल उपलब्ध कराता है तो भारतीय खरीददार एमएसपी की गारंटी की वजह से किसानों का माल नहीं उठा सकेंगे। फिर किसान कैसे अपनी फसल के दाम हासिल कर पाएगा। उसका तो खेती का खर्चा भी पूरा नहीं होगा। इसके बावजूद एमएसपी न तो बंद हो रही है और न ही खत्म होने जा रही है। यह किसानों का भ्रम है।
कृषि कानून में हमें इस डर से मुक्ति मिली!
वहीं, जींद निवासी का शहद है काम है। उनका कहना है कि पहले हम अपने शहद को लेकर एक स्टेट से दूसरे स्टेट नहीं जा सकते थे। वैट और फिर जीएसटी के खतरे बने हुए थे। अब नए कृषि कानून में हमें इस डर से मुक्ति मिल गई। इसके अलावा फरीदाबाद निवासी कहते हैं कि तीनों कृषि कानूनों ने बिचौलियों को खत्म कर दिया है। अगर अधिकारी निचले स्तर पर किसानों को जागरूक करें तो समस्या का समाधान होते देर नहीं लगेगी। सरकार को उन्हें किसानों के बीच उतारकर जवाबदेही तय करनी होगी।