दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा किसान आंदोलन कृषि मुद्दों पर बहुत कमजोर है, इसीलिए इसे जनसमर्थन से भी मजबूती देने का प्रयास चल रहा है। इसके तहत सिंघु बॉर्डर के आसपास रहने वाले लोगों और राहगीरों को खाने-पीने से लेकर अन्य जरूरी सामानों को बांटा जा रहा है। लोगों को यह बताने की कोशिश की जा रही है कि घर-बार छोड़कर ठंड में सड़क पर बैठा किसान सही है, जबकि उसकी मांग नहीं मानने वाली केंद्र सरकार गलत है। सिंघु बॉर्डर का नजारा किसी धार्मिक मेले से बहुत अलग नहीं है। ऐसा लगता है कि आंदोलनकारी अनुयायी हैं और उनकी मदद करने वाले सेवादार। वहां चाय-नाश्ते से लेकर सुबह-शाम के खाने सहित मेवे, मिठाई, दूध छाछ, स्वास्थ्य सेवाएं और गर्म कपड़े तक बांटे जा रहे हैं। इस आशय के संदेश और फोटो फेसबुक वगैरह पर वायरल हो रहे हैं और पोस्टर-बैनर लगाकर भी यही प्रचारित किया जा रहा है कि किसान तो अन्नदाता है, कोई आतंकवादी नहीं।
फायदेमंद है कानून
केंद्र सरकार बार-बार यह स्पष्ट कर चुकी है कि न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रणाली को खत्म किया जा रहा है और न ही मंडी व्यवस्था समाप्त की जा रही है। यही वजह है कि पंजाब और हरियाणा को छोड़कर लगभग पूरे देश के किसान नए कृषि कानूनों को अपने लिए फायदेमंद बता रहे हैं।
सिंघु बॉर्डर पर जमा किसानों को पता है हकीकत
जानकारों की मानें तो पंजाब और हरियाणा के ज्यादातर किसान यह समझ रहे हैं कि नए कृषि कानून उनके लिए फायदेमंद हैं, इसीलिए वे पंजाब में हुए आंदोलन से भी दूर थे और यहां धरने से भी दूर हैं। सिंघु बॉर्डर पर बैठे किसान भी इस कड़वे सच को दबी जुबान में स्वीकार कर रहे हैं कि उनकी सभी मांगें नहीं मानी जा सकतीं। यही वजह है कि धरने पर बैठे किसान एवं विभिन्न संगठन लंगर सेवा के जरिये जनता के सामने ऐसी छवि बना रहे हैं, जिससे उन्हें सही और केंद्र सरकार को गलत साबित किया जा सके।