Farmers Protest: कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की ओर सिंघु बार्डर पर चल रहे धरने में अब ज्यादातर बुजुर्ग ही दिखाई देते हैं। इनमें कई बुजुर्ग तो सत्तर की उम्र को पार कर चुके हैं। पंजाब से आए ऐसे ज्यादातर बुजुर्ग पारिवारिक दायित्वों से तकरीबन मुक्त हो चुके हैं।
कुल मिलाकर बुजुर्ग अब पूरी तरह से फुर्सत के पलों को धरने में शामिल होकर तरफरीह की तरह जी रहे हैं। ऐसे बुजुर्ग ही अंधे मोड़ पर जा पहुंचे आंदोलन के लिए टिमटिमाते लौ साबित हो रहे हैं जिन्होंने कृषि कानूनों के प्रविधानों को कभी पढ़ने समझने की कोशिश नहीं की है। तभी तो धरने में मिले लुधियाना के 70 वर्षीय परमिंदर सिंह कहते हैं कि घर पर बैठे ही रहते हैं। गांव के कई हमउम्र आ रहे थे तो वह भी यहां चले आए हैं।
गणतंत्र दिवस पर हुए उपद्रव के बाद से ही प्रदर्शनकारियों में शामिल युवा धीरे धीरे कम होने लगे थे, जिनकी संख्या अब बेहद कम नजर आती है। इससे ऐसा लग रहा है कि कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे इस बेमियादी आंदोलन से युवाओं का मोह भंग होता जा रहा है।
ऐसे में किसान मजदूर संघर्ष कमेटी पंजाब के महासचिव सरवन सिंह पंधेर मंच से अपने भाषण के दौरान युवाओं की भागीदारी बढ़ाने को लेकर लगातार अपील कर रहे हैं, लेकिन धरने के नजारे को देखकर ऐसा लगता है कि पंजाब के युवाओं पर उनकी अपील का कोई असर नहीं पड़ रहा है।
दरअसल गणतंत्र दिवस पर आयोजित ट्रैक्टर परेड के रूट को नहीं मान कर लाल किले तक जाने के लिए युवाओं को नेताओं ने ही उकसाया था, लेकिन उपद्रव के बाद यह मामला नेताओं की गले की फांस बनने लगी तो उन्होंने इसकी जिम्मेदारी युवाओं पर थोप दी थी। ऐसे में यह माना जा रहा है कि आंदोलन में साथ दे रहे युवाओं को इनकी दोहरी राजनीति समझ में आ गई है।
उधर बाहरी दिल्ली के इलाके में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर सिंघु बार्डर पर अलग ही नजारा देखने को मिला। महिलाओं ने जहां मंच की बागडोर संभाली, वहीं पुरुषों ने महिला व दूसरे प्रदर्शनकारियों के लिए लंच (दोपहर का खाना) बनाया। एक तरफ महिलाएं अपने संबोधन से आंदोलन को लौ दिखा रही थीं, वहीं दूसरी ओर पुरुष सब्जियों को तड़का लगा अपना हुनर दिखा रहे थे।
महिलाएं मंच से आंदोलन को ज्यादा तेज करने की बातें कर रही थीं तो पुरुष यह कहते सुनाई दिए, ‘चेक करो नमक ज्यादा तो नहीं हो गया है।’ दरअसल सिंघु बार्डर पर सोमवार को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। इस दौरान मंच से लेकर सुरक्षा तक की बागडोर महिलाओं ने ही संभाली। हरियाणा व पंजाब से भारी संख्या में पहुंची महिलाओं ने आंदोलन के 102वें दिन मंच का संचालन व अध्यक्षता की। युवा दिवस से ज्यादा भीड़ सोमवार को देखने को मिली।
करीब दो हजार महिलाओं ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अपनी हाजिरी लगवाई। किसान मजदूर संघर्ष कमेटी (पंजाब) के मंच के पास पहुंचीं मानसा की गुरजीत कौर ने कहा कि आंदोलन कमजोर नहीं हुआ है। जब तक कृषि कानून रद नहीं होते, तब तक हम यहीं डटे रहेंगे।