जानिये- आखिर क्यों सफलता के मुकाम तक नहीं पहुंच सकता है किसान आंदोलन

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इतिहास गवाह है कि कोई भी आंदोलन तब तक मुकाम पर नहीं पहुंचा, जब तक उसे जनसमर्थन नहीं मिला। इसे विडंबना ही कहेंगे कि दो सप्ताह से देश के व्यस्ततम हाईवे (सिंघु बॉर्डर) पर कब्जा जमाए बैठे किसानों के प्रति कहीं कोई समर्थन या सहानुभूति देखने को नहीं मिल रही। यहां तक कि धरनास्थल के आसपास रहने वाले और बॉर्डर क्रॉस करने वाले लोग भी न केवल सड़क पर बैठे इन किसानों को कोस रहे हैं बल्कि इनकी हठधर्मिता से हर रोज परेशानी और नुकसान भी उठा रहे हैं। इन किसानों ने बुधवार को जिस तरह से आंदोलन और तेज करने की घोषणा की है, उससे लोगों की चिंता और बढ़ गई है। अनहोनी की आशंका से लोग इन किसानों को कोस रहे हैं।

किसानों ने किया 5 किलोमीटर की रोड पर कब्जा

सिंघु बॉर्डर पर बैठे किसान हरियाणा की तरफ करीब पांच किलोमीटर तक सड़क पर कब्जा जमाए हुए हैं, जबकि टीकरी बॉर्डर पर करीब दो किलोमीटर तक फैले हुए हैं। इनकी वजह से देश की राजधानी दिल्ली का कई राज्यों से संपर्क तो बाधित हो ही रहा है, आसपास के गांवों और कॉलोनियों में रहने वाले लाखों लोगों की दिनचर्या, कारोबार और आवागमन भी प्रभावित हो रहा है। यही वजह है कि इन किसानों के प्रति लोगों के मन में सहानुभूति कम, गुस्सा ज्यादा है। यहां तक कि फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप और इंस्टाग्राम पर भी इनके समर्थन में कुछ खास देखने को नहीं मिल रहा और विरोध में काफी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।


रोजाना हो रहा भारी आर्थिक नुकसान

सिंघु बॉर्डर पर प्रॉपर्टी का काम करने वाले राजेश गुप्ता कहते हैं कि पिछले 13 दिनों में इन किसानों की वजह से उन्हें कई लाख रुपये का नुकसान हो चुका है। पहले रोजाना 15 से 20 हजार रुपये का कमीशन बन जाता था, जबकि अब उनके दफ्तर में कोई नहीं आ रहा।

कई लोगों का हो गया धंधा चौपट

सिंघु बॉर्डर पर ही मोटर मैकेनिक का काम करने वाले मुकेश पंवार कहते हैं कि प्रदर्शन के कारण उनका धंधा चौपट हो गया है। जब हाईवे पर आवाजाही ही नहीं हो रही तो कोई गाड़ी भी कैसे ठीक कराने आएगा।


किराना स्टोर चलाने वाले अतुल अग्रवाल भी ऐसी ही व्यथा बयां करते हैं। बोले, इन किसानों के ठाठ-बाट देखकर तो यही लगता है कि इन्हें कोई परेशानी नहीं है, लेकिन हाईवे पर कब्जा करके इन्होंने लाखों लोगों को अवश्य ही परेशान कर रखा है। सिंघु गांव निवासी विजय गुप्ता सरकारी कर्मचारी हैं। वह बोले, घर से बहू-बेटियों का निकलना मुश्किल हो गया है। बॉर्डर का माहौल देखकर बच्चों एवं बुजुर्गों के लिए भी डर लगा रहता है।


वहीं, हरियाणा के बहादुरगढ़ में रहने वाले सेवानिवृत्त उप सिविल सर्जन डॉ. मुंदरा ने भी यही कहा कि अगर किसान मांगों के लिए दूसरों के अधिकारों का हनन करेंगे तो फिर इनके खिलाफ ही माहौल बनेगा, पक्ष में नहीं।

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