जानिए कैसे छोटे किसानों के लिए वरदान साबित होगी कांट्रैक्ट खेती, सीधी खरीद के लिए आकर्षित होंगी बड़ी उपभोक्ता कंपनियां

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कृषि सुधार के नए कानूनों में कांट्रैक्ट खेती का प्रावधान लघु व सीमांत किसानों के लिए वरदान से कम नहीं होगा। उन्हें न केवल तमाम झंझटों से राहत मिलेगी बल्कि सालाना हजारों करोड़ रुपये की उपज की बर्बादी रोकने में भी मदद मिलेगी। कानूनी प्रावधान से कृषि टेक्नोलॉजी व भंडारण के क्षेत्र में निजी निवेश से उपज की पोस्ट हार्वेस्ट होने वाली क्षति रोकना संभव हो सकेगा। छोटी जोत के किसानों के समूह से बड़ी उपभोक्ता कंपनियां उपज खरीदने के लिए आकर्षित होंगी। किसानों के लिए जहां खेती जोखिम से मुक्त होगी, वहीं उन्हें उनकी उपज पर पूर्व निर्धारित कीमत भी मिलेगी।

एसबीआई की ताजा ‘इकोरैप रिपोर्ट’ में कृषि सुधार के कानूनों के प्रभाव का विस्तार से जिक्र किया गया है। खेतों में फसलों के पकने के बाद होने वाले नुकसान का आंकड़ा देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि कांट्रैक्ट खेती के प्रावधान से फसलों के हार्वेस्ट एंड पोस्ट हार्वेस्ट होने वाले नुकसान को रोकना संभव हो जाएगा। उत्पादकता में वृद्धि के साथ पैदावार को बढ़ाकर खाद्यान्न की मांग को पूरा किया जा सकता है। लेकिन फिलहाल जितनी पैदावार हो रही है उसे ही संरक्षित कर उसमें होने वाली क्षति को रोककर भी खाद्यान्न की मांग को पूरा किया जाना संभव है। फसल के पकने के बाद उसकी कटाई, मड़ाई, ढुलाई और सुरक्षित भंडारण के साथ उपभोक्ता तक पहुंचाने की पूरी श्रृंखला को विकसित किए जाने की जरूरत महसूस की जा रही थी। इसके लिए निजी निवेश की सख्त दरकार थी, जिसे कांट्रैक्ट खेती के प्रावधान से पूरा किया जा सकता है।

नुकसान को आधुनिक टेक्नोलॉजी से रोका जा सकता है

पोस्ट हार्वेस्ट की पूरी श्रृंखला में होने वाले नुकसान को आधुनिक टेक्नोलॉजी से रोका जा सकता है। वर्ष 2015 की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक पोस्ट हार्वेस्ट स्तर पर अनाज में 4.6 से छह फीसद, दलहनी फसलों में 6.4 से 8.4 फीसद, तिलहनी फसलों में 3.1 से 10 फीसद और फल व सब्जियों में 12 से 15 फीसद तक का नुकसान हो जाता है। मूल्य के रूप में किए गए आकलन के मुताबिक अन्न में सालाना 27 हजार करोड़, तिलहन में 10 हजार करोड़ और दलहन में 5000 करोड़ रुपए का नुकसान हो जाता है, जिसे इन प्रावधानों से रोका जा सकता है।


मंडी से बाहर होने वाली खरीद-बिक्री से छोटे किसानों को होगा सर्वाधिक लाभ

लघु व सीमांत किसानों के हित में बनाई जाने वाली नीतियां अब लाभ नहीं पहुंचा पा रही थीं। जबकि इस वर्ग के 86 फीसद किसानों के लिए कांट्रैक्ट खेती वरदान साबित हो सकती है। कृषि सुधार के ये तीनों कानून अगर जमीनी स्तर पर लागू हुए तो मंडी से बाहर होने वाली खरीद-बिक्री से छोटे किसानों को सर्वाधिक लाभ होगा। क्षमता के बावजूद स्थानीय व्यापारी आवश्यक वस्तु अधिनियम के खौफ से सीमित खरीद-फरोख्त करता था। लेकिन कानून में संशोधन और स्टॉक सीमा हटाने से अधिक खरीदारी होगी, जिससे उपज के मूल्य भी बढ़ सकते हैं। देश के ज्यादातर राज्यों में कांट्रैक्ट खेती की छूट नहीं थी, लेकिन कई एशियाई देशों में कांट्रैक्ट खेती का प्रयोग सफल रहा है। एसबीआई की इकोरैप रिपोर्ट में कांट्रैक्ट फार्मिंग को जरूरी बताते हुए सिफारिश की गई है कि देश के छोटी जोत के किसानों को एकजुट कर बड़ी उपभोक्ता कंपनियों को आकर्षित किया जा सकता है।

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